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बन्ध-मोक्ष क्या बाहर में है,
कहीं नहीं है, कहीं नहीं है। तत्त्व-दृष्टि से देख स्वयं में, . जो भी है सब तुझमें ही है।
तेरी भाव-चेतना जब भी,
पूर्ण सुनिर्मल होती है। तभी मलिनता के बन्धन से,
मुक्त चिदात्मा होती है।
--उपाध्याय अमरमुनि
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