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अनुक्रम
I प्रकाशकीय II पुरोवाचा
iii vii
दार्शनिक-दृष्टिकोण
१. प्रात्म-चेतना : आनन्द की तलाश में २. साधना का केन्द्र-बिन्दु : अन्तर्मन . . ३. चेतना का विराट रूप ४. तीर्थंकर : मुक्ति-पथ का प्रस्तोता . . ५. अरिहत, अरहन्त, अरुहन्त .. ६. तस्वमसि .. .. ७. आत्मा और कर्म .. ८. बन्ध-पमोक्खो तुज्ज्ञ अज्झात्थेव .. ६. अवतारवाद या उत्तारवाद .. १०. जैन-दर्शन : आस्तिक दर्शन .. ११. अनेकता में एकता १२. जैन-दर्शन की समन्वय-परम्परा .. १३. विश्वतोमुखी मंगल दीप : अनेकान्त
धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण
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१. जीवन परिबोध का मार्ग : धर्म .. २. आध्यात्मिक त्रिपथगा : भक्ति, कर्म और ज्ञान .. ३. वीतरागता का पाथेय : धर्म ४, धर्म का अन्तर-हृदय ५. साधना के दो आदर्श ६. राग का ऊर्वीकरण ७. जीवन में स्व' का विकास . आत्म-बोध : सुख का राज-मार्ग .. ६. कल्याण का ज्योतिर्मय पथ .. १०. जीवण-पथ पर कांटे किसने बोए .. ११. विविध आयामों में : स्वरूप-दर्शन .. १२. योग और क्षेम .. ... १३. धर्म का उद्देश्य क्या है ? १४. प्रात्म-जागरण .. १५. धर्म की परख का आधार
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