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जहाँ विषमता वहाँ नरक है, समता में ही स्वर्ग बसा है । ऊँचे-नीचे गिरि-नातों में, रोता है, जो पथिक फसा है ॥ विविध जाति के, विविध पंथ के, विविध अर्थ के द्वन्द्व खड़े हैं । इन द्वन्द्वों से जन-जीवन के, अंग-अंग सब भाँति सड़े हैं ॥
- उपाध्याय श्रमरमुनि
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पन्ना समिक्ख धम्मं
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