SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाज निर्माण में नारी का स्थान : में समाज का जो पूर्ण शरीर है, उसके एक ओर नारीवर्ग है और दूसरी ओरं पुरुषवर्ग । कहीं ऐसा तो नहीं है कि शरीर के एक हिस्से को लकवा मार जाए, वह बेकार हो जाए और शेष आधा शरीर ज्यों-का-त्यों सबल और कार्यकारी बना रहे । यह ठीक कि एक हाथ और एक पैर के सुन्न हो जाने पर भी दूसरा हाथ और दूसरा पैर हरकत रह सकता है, किन्तु काम करने को यथोचित सक्षम नहीं हो सकते। इसके विपरीत यदि शरीर के दोनों हिस्से ठीक अवस्था में रह कर गति करते हैं, तो वे अवश्य काम करेंगे और ऐसा ही जीवन समाज को कुछ दे सकेगा और कुछ ले भी सकेगा । आज ऐसा लगता है, समाज के आधे अंग को लकबा मार गया है और वह बेकार हो गया है। उसके पास वह निर्मल विचार और चिन्तन नहीं रहा, जो अपनी सन्तान को महान् बना सके । आज जो अभद्र गालियाँ, लड़के-लड़कियों की जुबान पर आती हैं, बहनों की ओर से ही आती हैं। हजारों कुसंस्कार और मेरे तेरे की दुर्भावना, प्रायः अबोध माताओं की ही देन है । निरन्तर द्वैतवाद की विषाक्त कड़वी घुट्टियाँ पिलाते रहने का अन्तिम यही दुष्परिणाम होता है । इस प्रकार, बच्चों के मन में जहाँ अमृत भरा जाना चाहिए, वहाँ जहर भरा जाता और आगे चलकर माता-पिता को जब उसका परिणाम भोगना पड़ता है, तब वे रोतेचिल्लाते हैं ! आज बच्चों का जो ऐसा भ्रष्ट जीवन बन रहा है, इसका एकमात्र कारण यही है कि हमारी बहनों की मानसिकता ऊँची नहीं रही । पक्षी को प्रकाश में उड़ने के लिए दोनों पंखों से मजबूत होना श्रावश्यक है । जब दोनों पंख सशक्त होंगे, तभी वह उड़ सकेगा, एक पंख से नहीं । यही बात समाज के लिए भी है। समाज का उत्थान पुरुष-स्त्री दोनों के समान शक्ति सम्पन्न होने पर निर्भर है । आज हमारा समाज जो इतना गिरा हुआ है, उसका मूल कारण यही है कि उसका एक पंख इतना दुर्बल और नष्ट-भ्रष्ट हो गया है कि उसमें कर्तृत्वशक्ति नहीं रहीं, जीवन नहीं रहा । एक पंख के निर्जीव हो जाने पर दूसरा पंख भी काम नहीं कर सकता । ऐसी स्थिति में पतन के सिवा उत्थान की सम्भावना ही क्या है ? आज सर्वत विषम हवाएँ चल रही हैं। जब-तब यह सुनने को मिलता है कि आज घर-घर में कलह की आग सुलग रही है। प्रश्न उठता है- यह कलह जागता कहाँ से है ? मालूम करेंगे, तो पता चलेगा कि ६० प्रतिशत झगड़े इन्हीं बहनों के कारण होते हैं। उसके मूल में किसी-न-किसी बहन की नासमझी ही होती है । झगड़े और मन-मुटावों का पता करने चलेंगे, तो पाएँगे कि उनमें से अधिकांश का उत्तरदायित्व बहनों पर ही है। इसका कारण बहनों का ज्ञान है । उनकी अज्ञानता ने ही उन्हें ऐसी स्थिति में ला दिया है। यदि वे ज्ञान का प्रकाश पा जाएँ और अपने हृदय को विशाल एवं विराट् रखें, अपने जीवन को महान् बनाएँ और मात्र लेने की बुद्धि न रखकर समय पर कुछ देने की बुद्धि भी रखें, यदि उनके मन इतने महान बन जाएँ कि अपने-पराये सभी के सुख-दुःख में समान भाव से सस्नेह सहयोग दे सकें, सेवा कर सकें, तो परिवारों के झगड़े, जो विराट् रूप ले लेते हैं, न ले सकें और न किसी प्रकार के संघर्ष का अवसर ही आ सके । नारी की आदर्श दानशीलता : यहाँ इतिहास की एक घटना याद आ जाती है, एक महान् नारी की महान् उदारता की। उसका नाम आज भले ही किसी को याद न हो, किन्तु उसकी दिव्य जीवन-ज्योति हमारे सामने प्रकाशमान है । भारत में बड़े-बड़े दार्शनिक कवियों ने जन्म लिया है। संस्कृत भाषा के ज्ञाता यह जानते हैं कि संस्कृत साहित्य में माघ कवि का स्थान कितना महत्त्वपूर्ण है ? माघ कवि नारी : धर्म एवं संस्कृति की सजग प्रहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only ३६१ www.jainelibrary.org.
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy