SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृति और सभ्यता संस्कृति और संस्कार एक ही धातु से निष्पन्न शब्द हैं। संस्कृति का अर्थ है-संस्कार और संस्कार का अर्थ है-संस्कृति । संस्कृति शब्द की एकान्त आग्रह के रूप में कोई एक व्याख्या और एक परिभाषा नहीं की जा सकती। संस्कृति उस सुन्दर सरिता के समान है, जो अपने स्वतंत्र स्वभाव से निरन्तर प्रवाहित होती रहती है। यदि सरिता के प्रवाह को बांध दिया जाए, तो फिर सरिता, सरिता न रह जाएगी। इसी प्रकार संस्कृति को और उस संस्कृति को, जो जन-मन के जीवन में घुल-मिल चुकी है, शब्दों की सीमा में बाँधना, राष्ट्र की परिधि में बाँधना और समाज के बन्धनों में बाँधना कथमपि उचित नहीं कहा जा सकता। संस्कृति की सरिता को किसी भी प्रकार की सीमा में सीमित करना, मानव-मन की एक बड़ी भूल है। संस्कृति के सम्बन्ध में पाश्चात्य विचारक मैथ्यू आर्नल्ड ने कहा है--"विश्व के सर्वोच्च कथनों और विचारों का ज्ञान ही सच्ची संस्कृति है।"" महान् विचारक बोबी के कथनानुसार संस्कृति दो प्रकार की होती है—परिमित संस्कृति और अपरिमित संस्कृति । वोबी का कथन है-"परिमित संस्कृति शृंगार एवं विलासिता की ओर भावित होती है। जबकि अपरिमित संस्कृति सरलता एवं संयम की ओर प्रवाहित होती है।" ३ यहाँ पर संस्कृति के सन्दर्भ में एक बात और विचारणीय है। और वह यह है, कि क्या संस्कृति और सभ्यता दोनों एक हैं, अथवा भिन्न-भिन्न है ? इस सम्बन्ध में श्रीप्रकाशजी ने बहुत सुन्दर कहा है-"सभ्यता' शरीर है, और संस्कृति प्रात्मा। सभ्यता जानकारी और विभिन्न क्षेत्रों की महान् एवं विराट् खोज का परिणाम है, जबकि संस्कृति विशुद्ध ज्ञान का परिणाम है ।" 3 इसके अतिरिक्त जिसे हम सच्ची संस्कृति कहते हैं, उसका एक प्राध्यात्मिक पहलू भी है। इसके सम्बन्ध में महान् विचारक मार्डेन ने कहा है-"स्वभाव की गम्भीरता, मन की ममता, संस्कृति के अन्तिम पृष्ठों में से एक है और यह समस्त विश्व को वश में करने वाली शक्ति में पूर्ण विश्वास से उत्पन्न होती है।" ४ इस कथन का अभिप्राय यह है, कि प्रात्मा की अजरता और अमरता में अटल विश्वास होना ही, वास्तविक संस्कृति है। संस्कृति के सम्बन्ध में भारत के महान चिन्तक सानेगुरु का कथन है कि-"जो संस्कृति महान् होती है, वह दूसरों की संस्कृति को भय नहीं देती, बल्कि उसे साथ लेकर पवित्रता देती है। गंगा की गरिमा इसी में है कि दूसरे प्रवाहों को अपने में मिला लेती है और इसी कारण वह पवित्र, स्वच्छ एवं आदरणीय कही जा सकती है। लोक में वही संस्कृति आदर के योग्य है, जो विभिन्न धाराओं को साथ में लेकर अग्रसर होती रहती है।' 1. Culture is to now the best that has been said and thought in the world, 2. Partial Culture runs to the arnote. exterme culture to simplicity. 3. While civilization is the body, culture is the soul, while civilization is the result of knowledge and great painful researches in divers field, culture is the result of wisdom. 4. Serenity of spirit, poise of mind, is one of the last Lesson of culture and comes from a perfect trust in the all controlling force of univers. संस्कृति और सभ्यता ३२३ Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy