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________________ प्रज्ञावाद के उदात्त स्वर अप्पणा सच्चमेसेज्जा ।-उत्तराध्ययन, ६, २ --अपने द्वारा अर्थात् अपने चिन्तन-मनन के द्वारा सत्य की खोज करनी चाहिए। संपिक्खई अप्पगमप्पएणं ।--दशवै. चूलिका २, १२. --अपने से, अपने चिन्तन-मनन से अपने को, अपने योग्य कर्तव्य को देखो-परखो। नाणेण जाणई भावे ।--उत्तराध्ययन २८, ३५ --ज्ञान से ही तत्त्व-बोध होता है। परीक्ष्य भिक्षवो! प्राां, मत वच्चो न तु गौरवात् ।--तत्त्व संग्रह -~-भिक्षुनो ! मेरी बात की भी परीक्षा करके ग्रहण करनी चाहिए। उसे इसलिए न ग्रहण करना कि बुद्ध ने कहा है, अतः तुम मेरे गौरव से ग्रहण कर लो। सम्तः परीक्ष्यान्यन्तरद् भजन्ते, मूढ़ परप्रतययनय बुद्धि । -कालिदास -विशिष्ट सत्पुरुष सत्य और असत्य की एवं योग्य और अयोग्य की परीक्षा करके, जो सत्य और योग्य है उसे ग्रहण करते हैं। मूढ़ पुरुष ही आँख मूंदकर दूसरों के विश्वास पर चलते हैं। ३२० Jain Education Intemational पन्ना समिक्खए धम्म For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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