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________________ आनन्दप्रद होता है। आचरणहीन व्यक्ति सबके मन में काँटे की तरह खटकता है और आचार-संपन्न पुरुष सर्वत्र सम्मान पाता है। प्रत्येक व्यक्ति उसके श्रेष्ठ आचरण का अनुकरण करता है। वह अन्य व्यक्तियों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है। अत: प्राचार की जीवन कला समस्त कलाओं में सुन्दरतम कला है।' आचरण जीवन का एक दर्षण है। इसके द्वारा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को देखापरखा जा सकता है। आचरण, व्यक्ति की श्रेष्ठता और निकृष्टता का मापक यन्त्र (Thermometre) है। आचरण की श्रेष्ठता उसके जीवन की उच्चता एवं उसके उच्चतम रहन-सहन तथा व्यवहार को प्रकट करती है। इसके अन्दर कार्य करने वाली मानवता और दानवता का, मनुष्यता और पाशविकता का स्पष्ट परिचय मिलता है। मनुष्य के पास आचार, विचार एवं व्यवहार से बढ़कर कोई प्रमाण-पत्र नहीं है, जो उसके जीवन की सच्चाई एवं यथार्थ स्थिति को खोलकर रख सके। यह एक जीवित प्रमाण-पत्न है, जिसे दुनिया की कोई भी शक्ति झुठला नहीं सकती। आचरण की गिरावट, जीवन की गिरावट है, जीवन का पतन है। रूढ़िवाद के द्वारा माने जाने वाले किसी नीच कुल में जन्म लेने मान से कोई व्यक्ति पतित एवं अपवित्र नहीं हो जाता है। वस्तुत: पतित वह है, जिसका आचार-विचार निकृष्ट है। उसके भाव, भाषा और कर्म निम्न कोटि के हैं, जो रात-दिन भोगवासना में डूबा रहता है, वह उच्च कुल' में पैदा होने पर भी नीच है, पामर है। यथार्थ में चाण्डाल वह है, जो सज्जनों को उत्पीड़ित करता है , व्यभिचार में डूबा रहता है और अनैतिक व्यवसाय करता है या उसे चलाने में सहयोग देता है। देश के प्रत्येक युवक और युवती का कर्तव्य है कि वह अपने प्राचार की श्रेष्ठता के लिए “Simple living and high thinking.".-.-सादा जीवन और उच्च विचार का आदर्श अपनाएँ। वस्तुतः सादगी ही जीवन का सर्वश्रेष्ठ अलंकार है। क्योंकि स्वाभाविक सुन्दरता (Natural beauty) ही महत्त्वपूर्ण है और उसे प्रकट करने के लिए किसी तरह की बाह्य सजावट (Make-up) की आवश्यकता नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि शरीर की सफाई एवं स्वस्थता के लिए योग्य साधनों का प्रयोग ही न किया जाए। यहाँ शरीर की शुद्धि के लिए इन्कार नहीं है, परन्तु इसका तात्पर्य इतना ही है कि वास्तविक सौन्दर्य को दबाकर कृषिमता को उभारने के लिए विलासी प्रसाधनों का उपयोग करना निषिद्ध है। इससे जीवन में विलासिता बढ़ती है और काम-वासना को उद्दीप्त होने का अवसर मिलता है। अतः सामाजिक व्यक्ति को अपने यथाप्राप्त रूप को कुरूप करके वास्तविक सौन्दर्य को छिपाने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु उसे कृत्रिम बनाने का प्रयत्न न करे। उसे कृत्रिम साधनों से चमकाने के लिए समय एवं शक्ति की बर्बादी करना मुर्खता है। हमारा बाहरी जीवन सादा और आन्तरिक जीवन सद्गुणों एवं सद्विचारों से सम्पन्न होना चाहिए। सौन्दर्य आत्मा का गुण है। उसे चमकाने के लिए आत्म-शक्ति को बढ़ाने का प्रयत्ल करें। अपने आप पर नियन्त्रण रखना सीखें। वासनाओं के प्रवाह में न बह कर, उन्हें नियन्त्रित करने की कला सीखें। यही कला जीवन को बनाने की कला है। और १. यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।--जीता। 2. Behavious is the finest of five art.----Emerson 3. Behavious is Mirror in which everyone display his image.--Goethe ४. जे अहिभवन्ति साह, ते पावा ते अचण्डाला ।...मृच्छकटिक, १०, २२ । 5. Let our life be Simple in its outer aspect and rich in its inner gain.-Rabindra Nath Tagore वनचर्य : साधना का सर्वोच्च शिकार ३०५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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