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द्रव्य क्रिया
केवल बाहर में,
अच्छी और बुरी होती है ।
पर, अन्तर का मूल्यांकन तो,
सही भावना ही करती है।
बाह्य नृत तो कोई भी जन,
कैसा भी हो, कर सकता है। पर, अन्तर तो अन्तर ही है,
वहाँ न दिखावा चल सकता है ॥
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--- उपाध्याय श्रमरमुनि
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