SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्मा बिना किसी अन्य के माध्यम से सीधा ही जो ज्ञेय का परिज्ञान करती है, वह स्पष्ट है, अत: प्रत्यक्ष है। और, जिस ज्ञान के होने में आत्मा और ज्ञेय वस्तु के बीच में सीधा सम्बन्ध न होकर, कोई माध्यम हो, जिसके सहारे ज्ञान प्राप्त किया जा सके, उसे परोक्ष ज्ञान कहते हैं। किसी दृश्य और घटना का अपनी आँखों से साक्षात्कार किया, यह भी एक बोध है, और किसी ने अन्य व्यक्ति से सुनकर या समाचार-पत्रों में पढ़कर उसी दृश्य और घटना की जानकारी प्राप्त की, यह एक अन्य ही बोध है। इस प्रकार ज्ञान तो दोनों ही प्रकार से प्राप्त हुआ है, किन्तु जो साक्षात् बोध अपनी आँखों से देखकर हुआ है, वह कुछ और है, और किसी से सुनकर या पढ़कर जो बोध प्राप्त हुआ है, वह कुछ और है। यदि हमारी आँखों के सामने अग्नि जल रही है, उसमें ज्वालाएँ धधक रही है, चिनगारियाँ निकल रही है, उसका तेज चमक रहा है, तो यह एक प्रकार से अग्नि का वह ज्ञान हुआ, जिसे हम प्रत्यक्ष या स्पष्ट ज्ञान कहते है । और, कहीं जंगल में से गुजर रहे हों और दूर क्षितिज पर धुआँ उठता हुना दिखाई देता हो, तो उसे देखकर कह देते हैं कि वहाँ अग्नि जल रही है, यह अग्नि का परोक्ष ज्ञान या अस्पष्ट ज्ञान हा। पहले उदाहरण में अग्नि का ज्ञान अपनी आँखों से स्पष्ट और प्रत्यक्ष सामने देखकर हुअा, और दूसरे उदाहरण में धुएं को देखकर अग्नि का ज्ञान अनुमान के द्वारा हुआ। ज्ञान दोनों ही सच्चे हैं। इनमें किसी को भी असत्य करार नहीं दे सकते, किन्तु ज्ञान के जो ये दो प्रकार हैं, उनके स्वरूप-बोध में स्पष्ट अन्तर है, क्योंकि उनकी प्रतीति एवं पद्धति भिन्न-भिन्न है। दोनों के दो रूप है। स्पष्ट अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञान में दृश्य का कुछ और ही रूप दिखाई पड़ता है. जबकि परोक्ष ज्ञान में प्रर्थात् अनुमान से कुछ दूसरा ही अनुभूति में प्राता है। पहले ज्ञान में अग्नि और आँख का सीधा सम्बन्ध होता है. जबकि दूसरे ज्ञान में आँख का सम्बन्ध धूम से होता है और पश्चात् धूम से अविनाभावी अग्नि का अनुमान बाँधा जाता है। ऊपर का विवेचन लौकिक प्रत्यक्ष को लक्ष्य में रखकर किया गया है। सर्वसाधारण जनता में यही प्रत्यक्ष और परोक्ष का स्वरूप है । परन्तु दर्शनशास्त्र की गहराई में जाते हैं, तो यह इन्द्रियजन्य लौकिक प्रत्यक्ष भी वास्तव में परोक्ष ही है। क्योंकि दर्शन में स्पष्टता और अस्पष्टता की परिभाषा लोक प्रचलित नहीं है। दर्शन में तो. जो निमित्त-सापेक्ष है, वह अस्पष्ट है और जो निमित्त-निरपेक्ष है, वह स्पष्ट है। अतःमति और श्रुत ज्ञान को शास्त्रकारों ने परोक्ष ज्ञान माना है। मति और श्रुत: मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परोक्ष ज्ञान है। क्योंकि इनसे वस्तु का निमित्त-निरपेक्ष साक्षात् बोध नहीं होता है। मति और श्रुत में आत्मा किसी भी ज्ञेय वस्तु को जानने के लिए इन्द्रिय और मन के निमित्त की सहायता लेती है, आत्मा से ज्ञेय का निमित्त-निरपेक्ष सीधा सम्बन्ध नहीं जुड़ पाता। रूप का ज्ञान आँखों के सहारे से होता है। प्रात्मा को रूप का ज्ञान तो जरूर हो जाता है, परन्तु उक्त रूप ज्ञान का वह साक्षात् ज्ञाता न होकर आँखों के माध्यम से ज्ञाता होती है। अतः यह रूप का साक्षात्कार प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं, क्योंकि रूप और आत्मा के बीच में आँखों का माध्यम रहता है। इसी प्रकार शब्द ज्ञान के लिए शब्द और आत्मा के बीच भी सीधा सम्बन्ध न होकर, कान के माध्यम से सम्बन्ध होता है। यही बात अन्य इन्द्रियों के सम्बन्ध में भी है। रस का ज्ञान जिह्वा के निमित्त अर्थात् माध्यम से होता है, गन्ध का ज्ञान घ्राण से और शीतादि स्पर्श का ज्ञान स्पर्शन-इन्द्रिय से होता है। और जो मनन, चिंतन तथा शास्त्रों के अध्ययन से ज्ञान होता है, उसमें विशिष्ट रूप से मन निमित्त होता है। यदि आँख और कान आदि इन्द्रियाँ ठीक है और स्वस्थ हैं, तो उन इन्द्रियों के माध्यम से रूप आदि का बोध अनुभूति में आता है, अन्यथा नहीं। यदि इन्द्रियों के माध्यम में कोई विकार या दोष आ जाता है, तो वह रूप आदि का बोध भी अवरुद्ध हो जाता है, एक प्रकार से ज्ञान के द्वार पर ताला लग जाता है। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरेन्द्रिय आदि जीवों में जिन-जिन १५६ Jain Education Intemational पन्ना समिक्खए धम्म www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy