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जीवन निज में स्वयं विकस्वर,
होता सद्गुण के बल से। बाह्य-भाव तो साधन भर है,
सत्य-स्रोत अन्तस् स्थल से ॥
फूल स्वयं अन्दर से खिलता,
चहुं दिशि महक फैल जाती। गुंजन करती द्रुत भ्रमरों को,
टोली खुद ही आ जाती॥
--उपाध्याय अमरमुनि
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