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राग-द्वेष के कण्टक वन को,
शुद्ध बोध से पूर्ण जलाए। कभी नहीं मुरझाने वाला,
मुक्ति-भाव का पुष्प खिलाए॥
विषम-भाव को आग लगी है,
कैसे यह बुझ पाएगी? धीतरागता की परिणति ही,
समताऽमृत बरसायेगी।
-उपाध्याय अमरमुनि
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