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जाति रूप में, पंथ रूप में,
फैली है सब ओर विषमता । समन्वयी शुभ ज्योति जगाकर,
करो द्वैत को दूर अन्धता।
पुष्प-वाटिका में फूलों के,
भिन्न-भिन्न सब रंग-रूप हैं। माला में जुड़ते ही सबकी,
अभिनव शोभा एक-रूप है।
--उपाध्याय अमरमुनि
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