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यह निर्झर, यह सरिता, सागर,
दूर-दूर है, भिन्न-भिन्न है। किन्तु सभी में मूल तत्त्व तो--
एक रूप में जल अभिन्न है ॥
महावीर का अनेकान्त है,
भिन्न-भिन्न में है अभिन्नता। छोड़ कदाग्रह मत-पंथों का,
लखो सत्य की एकरूपता ॥
--उपाध्याय अमरमुनि
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