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________________ का स्वभाव है। अग्नि का स्वभाव उष्णता है, जल का स्वभाव शीतलता है, सूर्य का स्वभाव प्रकाश करना है और तारों का स्वभाव रात में चमकना है। प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव के अनुसार कार्य कर रही है। स्वभाव के समक्ष विचारे काल आदि क्या कर सकते हैं? ३ कर्मवाद : कर्मवाद का दर्शन तो भारतवर्ष में बहुत चिर-प्रसिद्ध दर्शन है। यह एक प्रबल दार्शनिक विचार-धारा है। कर्मवाद का कहना है कि काल, स्वभाव, पुरुषार्थ आदि सब नगण्य है। संसार में सर्वत्र कर्म का ही एकछत्र साम्राज्य है। देखिए--एक माता के उदर से एक साथ दो बालक जन्म लेते हैं, उनमें एक बुद्धिमान होता है, और दूसरा वनमूर्ख ! ऊपर का वातावरण एक होने पर भी परस्पर भेद क्यों है ? मनुष्य के नाते सब मनुष्य एक समान होने पर भी उनमें कर्म के कारण ही भेद है। बड़े-बड़े बुद्धिमान चतुर पुरुष भूखों मरते हैं और वज्रमूर्ख गद्दी-तकियों के सहारे सेठ बनकर आराम करते हैं। एक को माँगने पर भीख भी नहीं मिलती, दूसरा रोज हजारों रुपये खर्च कर डालता है। एक के तन पर कपड़े के नाम पर चिथड़े भी नहीं हैं, और दूसरे के यहाँ कुत्ते भी मखमल के गद्दों पर लेटा करते है। यह सब क्या है ? अपने-अपने कर्म है। राजा को रंक और रंक को राजा बनाना, कर्म के बाएँ हाथ का खेल है। तभी तो एक विद्वान् ने कहा है--'गहना कर्मणो गतिः' अर्थात् कर्म की गति बड़ी गहन है। ४ पुरुषार्थवाद : . पुरुषार्थवाद का भी संसार में कम महत्त्व नहीं है। यह ठीक है कि लोगों ने पुरुषार्थवाद के दर्शन को अभी तक अच्छी तरह नहीं समझा है और उन्होंने कर्म, स्वभाव, काल आदि को ही अधिक महत्त्व दिया है। परन्तु पुरुषार्थवाद का कहना है कि बिना पुरुषार्थ के संसार का एक भी कार्य सफल नहीं हो सकता। संसार में जहाँ कहीं भी, जो भी कार्य होता देखा जाता है, उसके मूल में कर्ता का अपना पुरुषार्थ ही छिपा होता है। कालवाद कहता है कि समय आने पर ही सब कार्य होता है। परन्तु उस समय में भी यदि पुरुषार्थ न हो, तो क्या हो जाएगा? ग्राम की गुठली में ग्राम पैदा करने का स्वभाव है, परन्तु क्या बिना पुरुषार्थ के यों ही कोठे में रखी हुई गठली में आम का पेड़ लग जाएगा? कर्म का फल भी बिना पुरुषार्थ के यों ही हाथ धरकर बैठे रहने से मिल जाएगा? संसार में मनुष्य ने जो भी उन्नति की है, वह अपने प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा ही की है। आज का मनुष्य हवा में उड़ रहा है, सागर में तैर रहा है, पहाड़ों को मिट्टी के ढेले की तरह तोड़ रहा है, चाँद पर एवं अन्य ग्रहों पर पहुंच रहा है, परमाणु और उद्जन बम जैसे महान् आविष्कारों को तैयार करने में सफल हो रहा है। यह सब मनुष्य का अपना पुरुषार्थ नहीं, तो और क्या है ? एक मनुष्य भूखा है, कई दिन का भूखा है। कोई दयालु सज्जन मिठाई का थाल भरकर सामने रख देता है। वह नहीं खाता है। मिठाई लेकर मह में डाल देता है, फिर भी नहीं चबाता है, और गले से नीचे नहीं उतारता है। अब कहिए, बिना पुरुषार्थ के क्या होगा? क्या यों ही भूख बुझ जाएगी? आखिर मुंह में डाली हुई मिठाई को चबाने का और चबाकर गले के नीचे उतारने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा ! तभी तो कहा गया है-"पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो।" ५ नियतिवाद : नियतिवाद का दर्शन जरा गम्भीर है। प्रकृति के अटल नियमों को नियति कहते हैं। नियतिवाद का कहना है.-संसार में जितने भी कार्य होते हैं, सब नियति के अधीन होते हैं। सूर्य पूर्व में ही उदय होता है, पश्चिम में क्यों नहीं ? कमल जल में ही उत्पन्न हो सकता है, शिला पर क्यों नहीं? पक्षी आकाश में उड़ सकते हैं, गधे-घोड़े क्यों नहीं उड़ते ? हंस श्वेत क्यों है, और कौवा काला क्यों है ? पशु के चार पैर होते हैं, मनुष्य के ___पन्ना समिक्खए धम्म Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003408
Book TitlePanna Sammikkhaye Dhammam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year1987
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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