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षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [820 - 823 ). ५३-५४ $20) जि के जीव 'विराहिया' मई दुहेला कीधा ति पुणि जीव कउणि ? (७) एगेंदिया १०।बेइंदिया ११। तेइंदिया १२॥ चउरिंदिया १३॥ पंचिंदिया १४।
एतलइ छट्ठी संपदा । एकु फरसनरूपु जीहं रहइं हुयइ ति एकेंद्रिय, यथा पृथिवीकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय । तत्र पृथिवीकाय यथा खडी, धाहुडी, फिटिकडी, पाधरी, तूरी, 5 अरणेटउ, पाहणु, सींधवु, सूंचलु, हरियालु, हींगलो, माटी, परवाल, अनेरूं जु काइ खाणि माहि ऊपजइ सु पुढविकाउ । तथा हिमु, करा, ऊसु, पाणिउ, धूयरि, घनोदधि, अनेरू जु को जलभेदु सु अप्काउ । तथा आगि, वीज, उल्का, अंगार, मुर्मुरु, ज्वाला, अनेरू जु को अग्निभेदु सु तेउकाउ । तथा गुंजाशङ्ख करतउ जु वाइ सु गुंजावातु, भूमि ओकली करतउ जु वाइ सु उत्कलिवातु, भूतोलिउ मंडलाकारु जु वाइ सु मंडलिकावातु, शिलारूपु जु सु घनवातु, सूक्ष्मरूपु जु सु तनुवातु, अनेरू जु को 10 वातभेदु सु वाउकाउ । तथा साधारण वनस्पति अनंत कायभेद प्रत्येक वनस्पति अपर सर्व वनस्पतिभेद ।
821) तथा फरसन-रसनारूप बि इंद्रिय जीह रहइं हुयई ति बेइंद्रिय । यथा कृमि, गंडोला, तंबोलिया, गाडर, वालउ, पूंयरा, शंख, कपर्दक, जलो प्रमुख । फरसन रसना' घ्राणरूप त्रिन्हि इंद्रिय जीह रहइं हुयइं ति त्रेइंद्रिय यथा-कीडी, मंकोडी, कुंथुया, गोगीडा, जू, जऊया, उदेही, चांचुड,
मांकुण एवमादि । तथा फरसन रसना घ्राण चक्षुर्लक्षण चत्तारि इंद्रिय जीह रहइं हुयई ति चरिंद्रिय, 15 यथा-माखी, वींच्छी, पतंग, तीड, भ्रमर प्रमुख । फरसन रसना' घ्राण चक्षु श्रवणलक्षण पांच इंद्रिय
जीहं रहई हुयइ ति पंचेंद्रिय, यथा-देव, माणुस, नारकी, तियच, जलचर मत्स्यादिक, थलचर गोमहिषी सिंह व्याघ्रादिक, खचर हंस सारस शुक काक बग ढींक चटकप्रमुख ।
22) अथ विराधनाभेद लिखियइं
(८) अभिहया १५, वत्तिया १६, लेसिया १७, संघाइया १८, संघट्टिया १९, 20 परियाविया २०, किलामिया' २१, उद्दविया २२, ठाणाओ ठाणं संकामिया २३, जीवियाओ ववरोविया २४, तस्स मिच्छा मि दुक्कडं २५ ।
एतलइ सातमी संपदा । अभिसंमुहा आवता हूंता पाइ करी हणिया, 'अभिया' । अथवा ऊपाडी करी लांखिया 'अभिया' । 'वत्तिया' पुंजि कीधा, अथवा धूलि ओटहिया । 'लेसिया' भूमि भित्ति थंभादिकहं लगाडिया अथवा थोडउं सउं भीडिया। 'संघाइया' परस्पर सरीरे करी पिंड कीधा । 25 'संघट्टिया' थोडउं सउं फरसिया। परियाविया' घणउं दूहविया। 'किलामिया" गिलानि पमाडिया अथवा
जीवियसेसु पमाडिया । 'उद्दविया' त्रसाडिया । 'ठाणाओ ठाणं संकामिया' एक थानक हूंता बीजइ थानि संक्रमाविया । 'जीवियाओ ववरोविया' निटोल मारिया । 'तस्स मिच्छा मि दुक्कडं' 'अभिहया' इत्यादि प्रकार माहरउं दुष्कृतु मिथ्या विफल हुयउ। 823) मिच्छा मि दुक्कड पद नउ अर्यु सिद्धांत माहि कहिउ । यथा
मि त्ति मिउमद्दवत्ते छ ति य दोसाण छायणे होइ । मि त्ति य मेराइ ठिओ दु ति दुर्गच्छामि अप्पाणं ॥ [५३] कत्ति कडं मे पावंड त्ति य डेवेमि तं उवसामणं । एसो मिच्छादुक्कड पयक्खरत्थो समासेणं ॥
[५४] 820) 1 Bh. पंचेंदिया। 2 Bh adds इंद्रिउ । 3 Bh. जं। 21) 1 Bh. रसन। 2 Bh. द्रिय । 3 B, चिंचुड। 4 Bh. adds तथा । $22) 1 Bh. कलामिया । 2 B. थान। Bh. has added the-क laters
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