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________________ 545-47 ) ७९२-७९३] श्री तरुणप्रभाचार्यकृत १९५ किसउं ? " आश्चर्यु चित्ति चीतवइ छइ मंत्री तेह आघउं काई अकहिऊ जु करी सु पुरुष आकाशि” ऊपरमिउ 121 (545) अथानंतरु चंपकादि तरुकुसुमे चिंतामणि पूजी करी मित्राणंदु सानंदु संभूतु हूंत चतुरंगु सैन्यु करावी करी संध्यासमइ गज वाजि रथ पदाति लक्षण चतुरंगदल सहित प्रबलनिस्वान निस्वनहं करी दस दिसीमुख मुखर करतउ आपणा पुर प्रति पाछउ आविउ । जिम महोरगु ऊंदिर रहईं वेदु घातइ तिम पुर रहई वेदु घाती रहिउ' । ' कउणि पुर' वेदु घातिउ ! इसउं भणी करी राइ हेरक मोकलिया हूंता, हेरक कटक माहि आविया | मित्राणीद मंत्रिपतिई देखी करी ओलखिया । भणिउ, "अहो हेरक भुजागर्व गर्वितु छइ भूपति, सु तुम्हे माहरइ वचनि भणउ । 'पुण्यप्रभावि संप्राप्त' सैन्य संभारु मित्राणंदु मंत्रींदु बाहिरि आविउ छइ' । जइ किमइ तउं विक्रमाक्रांत समुद्रांत महीतलु छइ, उ वहिल प्रहारु करिया निमित्त कि । " इसी परि हेरक आभीषी करी वस्त्रालंकारहं संभूषी करी 10 राजेंद्र कन्हइ मंत्रींद्रि मोकलिया । ति पुण हेरक पाछा नगर माहि आवी करी राजेंद्र रहई तिमहिं जि वीनवई । तर पाछइ राउ अति विस्मयरस' संप्रेरितु हूंतउ सुस्थचित्तु " होइ करी केतलाई एकह" लोकह परिवृतु हूंत जिहां मित्राणंदु मंत्रींदु छइ तिहां आविउ । मित्राणंदु पूर्वप्रतिपन्नता लगी राय रहई सामुहउ ऊठिउ । ' इष्ट विरोधु तां हुयई जां दर्शनु न होई संतहं रहई ' । प्रणमी करी राउ सिंहासन बसालीउ महंत 2 | महंत राइ बलात्कारिहें बइसाली करी भणिउंवरेण्य" पुण्यमस्त्येव शौर्यादिव्यवसायतः” । पुण्यभाजां हि जायन्ते किङ्करा व्यवसायिनः || भवद्भाग्योदयः कश्चिद् यस्मादिदृक् चमूचयः । येनाहं तव भर्तापि भृत्यवद्भामि तेऽग्रतः ॥ [ ७९२] [ ७९३ ] (546) इसी परि राउ भणी करी पूछइ । " भणि' मंत्रीवर ! ए असांभूतिक विभूति तू रहई 29 किहां हूंती हुई ? " मंत्री भणइ, " महाराज ! पुण्यप्रभावि किसकिस उं' न हूयई ? " दिव्यपुरुष तणउ वृत्तांतु कहिउ । तर पाछइ राउ रूलियायितु' थिउ । महामहोत्सवि मंत्रींद्र सहित राजेंदु साश्चर्य पुरलोक' विलोकीतउ हूँउ पुर माहि आविउ । तेह दिवसलगी चिंतामणि प्रभावि पूर्ण मनोवांछित लक्ष्मीकु छन् मित्राणंदु मंत्री, तेह सउं राय रहई महा मैत्री हुयई । $547) एक वार भानुभूपति सउं सभा माहि बइठा हूंता महामात्य रहई उद्यानपालु आवी राय रहईं बधावइ, “महाराज ! सीमंधरु इसइ नामि यथार्थाभिधानु गणधरु तुम्हारइ क्रीडोद्यानि समोसरिउ ।” उद्यानपाल रहई सर्वागविभूषण बहु द्रविणवितरणु करी भानुभूपति सउं मित्राणंदु मंत्रीश्वरु मुनिवंदन निमित्तु उद्यानि पहुतउ । तिहां नेत्रामृत वृष्टिकारक मुनिवर रहई राजेंद्र मंत्री वांदी करी देशनामृतपानविधान निमित्त उचित स्थानकि बइठा । देशनावसानि राजेंद्र मुनि कन्हा पूछइ । "L भगवन ! मित्राणंद रहईं विपत्ति समइ' संपत्ति किसा पुण्य नइ प्रभावि हुई ' ?” मुनि भणइ, “ महाराज ! जिसी 30 लक्ष्मी भारि करी भूमिपतित अमरावती हुयइ इसी पद्मपत्रा नामि पुरी हूई स पुण लोक माहि अतिप्रसिद्ध हूई | तिहां प्रतापि करी जिसउ ग्रीष्मऋतु आदित्य हुयइ इसउ आदित्यु नामि महीपति हूयउ । राजेंद्र 20 (544) 20 Bh. आकासि । P. आकाश | 21 B. ऊपरि- । P. ऊपरि गिउ | (545) 1 B. omits- मुख । 2 P. पालउ । 3. Bb. omits रहि - 1 4 P. पुरु। 5P. adds - गर्वि । 6p. सिप्राप्त। 7 p. छउ । 8 Bh. विहलउ । 9p. विस्मया । 10 p. स्वस्थ - 1 11 Bb. omits. 12 Bh. P. महतइ । 13 Bh. P. महतउ । 14 P. चीरेण्यं । 15 P. सूरादि । §546) 1 P. भणिइ | 2 P. does not repeat. 3 P. रलियायितु । 4 P. adds विलोकी । 5 Bh. हुई 8547) 1 P. रहई । 2 P. हुयइ । 3 B. omits जि- Bh has it in the margin; P has जे-1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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