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________________ १४८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$436-437). रक्तवख वेष्टितु करी तिहां मेलिहउ। सु नमस्कार-स्मरण-परायणु मरी करी देवु इयउ। अवधिज्ञानि देखी बौडभक्त हयउ। इणि काराण मिथ्यादृष्टि परिचउ न कीजई। बौद्धहं रहई रत्न स्वण लंकारालंकृति हाथि करी अधु हूंतउ भोजनु दियइ । लोकमध्यभाग इसउ अतिसउ बोद्धहं रहई हूयउ। 'अहो धन्यु बौद्धशासनु !' श्रावकु लोकु लोके अवलेहियइ।। 5 अनेरइ दिवसि श्रीधर्भवोषसूरि नाम' आचार्यमिश्र तिहां आविया। श्रावके वांदी करी तिहां नउ वृत्तांतु कहिउ । आचार्ये उपयोग दीधा सगल्लू वृत्तांतु जाणी करी एक साधु संघाडउ मोकलिउ। भाजिउं "बौद्ध देवे कन्हा भिक्षा दिवारिसिई, पुर्णि तुम्हे म लोजि। हाथु साही इस भणिजिउ। गुज्झगा ! बुज्श, बुज्झ, मा मुज्झ।" इस तेहे कीधडं । देव रहइं सुभ कर्मोदय लगी प्रतिबोधु ऊपनउ , भवांतरू जाणिउ । गुरुपादमूलि आवी - मिथ्या दुःकृतु ' दीधउं । बली साधु रहई भक्ति करिवा लागउ। 10 ईहं सम्यक्त्वातिचार तणइ आचरणि जु कम्मु बांधउं सुपडिकम्मे देसियं सव्वं' पूर्ववत् । 8436) सम्यक्त्व प्रकर्वइतउ तीर्थकर नामकर्म' तणी उपार्जना जीव रहई हुयइ। सम्यक्त्व प्रकर्ष पुण वीस थानक संसेवना करी हुयइ । तिणि कारणि वीस थानक विचारु लिखियह । अहंदाराधनु १, सिद्धाराधनु २, प्रवचनाराधनु ३, गुराधनु ४, स्थविराराधनु ५, श्रुतधराराअनु ६, तपस्विशुश्रूषा ७, अभीक्ष्णज्ञानोपयोगु ८, सम्यक्त्वनिरतीचारता ९, विनयनिरतिचारता 15 १०, आवश्यकनिरतिचारता११, मूलोत्तरगुण निरतिचारता १२, क्षणलवसशिकालिहिं आर्तरौद्रपरिहार धर्मध्यानासेवना १३, तपश्चरणकरणता १४, सुपात्रदानता १५, वैयावृत्यकरणता १६, मनःसमाधि संपादना १७, नवज्ञानग्रहणता १८, श्रुतभक्तिकरणता १९, प्रवचनप्रभावना'२०। 8437) तत्र-अरहंतहं रहई त्रिहुं काले विधिवत् पूजा सद्भुतगुणस्तवन यथादर्शनप्रणमनादि करणु अहंदाराधनु पहिल थानकुं। लोकाग्रप्राप्त प्रक्षीणाशेषकर्मजाल अनंतज्ञान अनंतदर्शन अनंतसम्यक्त्व अनंतवीर्य अनंतानंत छई सिद्ध तीहं तणइ विषद एकाग्रता मज माहि ज कीजइ स बीजउं थानकु। चतुर्विध श्रीसंघरूपु प्रवचनु अथवा द्वादशांग लक्षणु प्रवचनु तेह विषइ शक्ति तणइ अनुसार आज्ञाप्रतिपालनु जु कीजइ सुत्रीज थानकु। पंचमहान्त प्रतिपालक शुद्धधर्मोपदेशदायक गुरु तणइ विषद परतंत्रता करी सर्व धर्म कर्म विषइ जु प्रवर्त्तनु सु गुर्वाराधनु चउथउं थानकु। ___ समवायांगधर अथवा वयोवृद्ध जि छई स्थविर तीहं तणइ विषइ जु निश्चल भक्तिकरणु सं 30 स्थविराराधनु पांचम थानकु । सूत्रधर कन्हा अर्थधरू प्रधानु अर्थधर कन्हा सूत्रार्थधरु प्रधानु इसी परि बहुश्रुतहं तणइ विषा सारेतर भावि करी जु भक्तिकरणु सु बहुश्रुतारा धनु छटुउं थानकु॥ तीव्रतपु जि करई तीहं तणइ विषइ श्रद्धानपरायण होई करी जु शुश्रूषा कीजइ सु तपस्वि समाराधनु सातमउं थानकु॥ सिद्धांत तणा पाठ विवइ गुणन विषद प्ररूपण विषद वारवार जु सावधानता भवनु सु अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग आठमां थानकु ॥ 25 8435) 6. P. समर । 7. Bh. अविधि । 8. Bh. भक्त । 9. Bh. omits. 10. P.मिलिजउ | evidently confusing the preceding म with लेजिउ । 8436)1. Bh. omits-कर्म। 2. Bh. adds शीलव्रतनिरतिचारता १२ । 3. Bh.-धर्मध्यानशक्लध्यानासेक्ना। 4. Bh. adds संपादना। 8437 ) 1 Bb. adds तणइ । 2 Bh, भक्ति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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