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________________ १४६ षडावश्यकवालावबोधवृत्ति [$431-483). ५८२ अचालनीउ कहइ । तउ पाछइ सुवेगु देवु इंद्रवचन विषइ संदेहु धरतउ हूंतउ वैक्रियऋद्धि विस्तार सहितु परीक्षा निमित्तु आविउ । तिणि देवि दिव्यशक्ति बलि मायामउ साधु समूहु अकार्य करतउ राजेंद्र रहई तिम दिखालिउ जिम जउ अनेरउ देखा तउ धर्म इंतउ निश्चई सउं पडवडइनरवर्म राजे पुणि तिम साधुवृंदु देखी मन माहि चतिवइ । 'कषादिकह' करी हेम जिम शुद्ध जिन धर्म एकु छई । किंतु ए पुण , 5 मुनि गुरु कर्मभारभावि करी विनडिया' हूंता जिन धर्म रहई लायवु करई। सुलाधव जि मतिमंत हुयई तेहे शक्ति हूंती अवश्यु राखिवउ' इसउं चीतवी करी साभभाविहिं जिकरी अकार्य हूंता मुनि निवारिया । देवु सम्यक्त्वविषइ निश्चलु जाणी करी नरवर्म राय रहइं प्रणमी करी साक्षात्कारि होई कहा'महाराज धन्यु त जेह तू रहई सभा माहि बइठउ इंद्र महाराजु सम्यक्त्व तणी स्तुति करइ।' इसउं भणी आपणउ मउडु आपी करी आपणइ थानकि गयउ । नरवर्मु महाराजु सम्यक्त्वमूलु गृहिधर्म' चिरकालु 10 प्रतिपाली करी पुत्र मित्रादि सहितु दीक्षा ले करी सुगति पहुतउ ॥ नरवर्म नरेंद्रस्य दृष्टवा सम्यक्त्वजं फलम् । स्वगोपवर्गदं भव्याः सम्यक्त्वे सन्तु निश्चलाः ॥ [ ५८२] 8431) अथ सम्यक्त्वातिचार प्रतिक्रमणु प्रस्तुतु कहइ । जीवादि तत्त्वविषइ संदेह करणु शंका कहियइ १ अहिंसादिलेस दर्शनइतउ पडू धर्म जिनप्रणित पुणि धर्म इसी परि अन्य धर्म तणी स्पृहा आकांक्षा कहियइ २। 'विगंच्छित्ति धर्मफल विषइ संदेहु विचिकित्सा कहियइ । विउच्छत्ति पाठि हूंतइ विदई यथास्थितु जीवादे तत्त्वु जाणई तिणि कारणि विद साधु कहियइ । अहो महामलिणा एप इसी परि साधु निंदा विउच्छा कहियइ ३ । 'पसंस तह संथवो कुलिंगीसु' कवित्व वचनचातुरी चेटकसिद्ध्यादिकु अतिसउ को एकु मिथ्यादृष्टि तणउ देखी करी अहो 20 महाकवि एउ' इसी परि स्तुति मिथ्यादृष्टि कुलिंगी तेह तणी प्रशंसा कहियइ ४ । तथा संस्तव मिथ्यादृष्टि कुलिंगी तेह सउं मैत्री कहियइ ५॥ 8432) ईहां शंका विषइ उदाहरणु । यथा नगरि पकि सेठि एक तणा बि पुत्र लेसाल पढई । तीहं रहई आरोग्य बुद्धि वृद्धि निमित्त माता सप्रभाव ओसही पेया एकांतस्थानि थिकी करावइ । तीहं माहि एक रहई मक्षिकादि शंका लगी मनि सूग ऊपजइ । मानसदुक्खपूर्वक सरीरदुक्ख इणि कारणि तेह रहई वल्गुली रोगु ऊपनउ । मूयउ । इहलोक सुख हूंतउ चूकउ । बीजउ पुत्तु मन माहि चींतवइ 'माता अहितु कदाकालिहिं न चीतवइं। तिणि कारणि निःसंदेहु थिकउ पेयापानकु करतउ आरोग्य बुद्धि वृद्धि सहितु चिरंजीवी हूयउ इहलोक सुखभागी हूयउ। 30 इसी परि सम्यक्त्व विषद पुणि जु जीव संदेहपरु हूयइ सु सासयसुहु न लहइ । निःसंदेहु हूंतउ सासयसुहु लहइ । 8433) आकांक्षा' विषइ उदाहरणु राजा अनइ महामात्यु बे जणा अश्वापहारइतउ अटवी माहि गया। भूखिया हूया। वणफल 35 खाधा। नगरि आविया । राजा सूपकार तेडी करी कहइ, 'जि के भक्ष्यभेद' संभवई ति सगलाई करउ। 8430)1. P. विकिय । ( in B. वै-looks like वि.) 2. Bh. मायमउ। 3. Bh. gloss कसवटि । B. and Bh. have cancellel 'या' after कषा-1 4. P. विनडि । 5. Bh. P. सम-1 6. P. तूं। 7. P. गृह-। 8431)1. Bh. reads the sentence differently : 'विउच्छि'त्ति पाठि हूंतई विदई यथास्थितु जीवादितत्त्वु जाणई तिणि कारणि विद साधु कहियई । तीहं रहई मल मलिनवस्त्रगात्रता देखी करी निंदा ज कीजइ स 'विउच्छा' कहिया ३ । 843211. B. P. omit. 2. P. थकी। 3. P. मानि। 4. P. थकउ। 5. P. इहलोकि । 8433)1, P. अकांक्षा। 2. P. भक्षभेद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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