SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$401). ४९४-४९७ मिच्छादसणवित्ती ९ अपञ्चक्खाण १० दिहि ११ पुट्ठी १२ य । पाडुचिय १३ सामंतोवणिय १४ नेसहि १५ साहत्थी १६ आणयणिय १७॥[४९४ ] वियारणिया १८ अणभोगा १९ अणवकंखपच्चइया २० । अन्ना पओग २१ समुयाण २२ पिज्ज २३ दोसे २४ इरियावहिया २५ ॥ [४९५ ] 5 तत्र ज कायि करी कीजइ स काइकी क्रिया १, अधिकरणि षङ्गादिकि करी ज कीजइ स आधिकरणिकी क्रिया २, प्रद्वेषि प्रकृष्टकोपि करी ज कीजइ स प्राद्वेषिकी क्रिया ३, अनेरां प्राणियां तणइ परितापि कष्टि करी ज कीजइ स परितापनिकी क्रिया ४, प्राणातिपाति जीवविनासी करी ज कीजइ स प्राणातिपातिकी क्रिया ५, आरंभि पृथिवीकायाद्युपघाति करी ज कीजइ स आरंभिकी क्रिया ६, परिग्रहि मूर्छापरिणामि करी ज कीजइ स पारिग्रहिकी ७, मायाप्रत्यया मायानिमित्ता क्रिया ८, मिथ्यात्व10 प्रत्यया मिथ्यात्वहेतुका ९ संयमविघातकारि कषाय तणउं प्रत्याख्यानु परिहारु जिणि क्रिया कीजती हूंती न हुयई स अप्रत्याख्यान क्रिया १०, रागद्वेषसहित दृष्टिक्रिया दृष्टि ११, रागपूर्व स्त्रीकाय संस्पर्शलक्षण स्पृष्टि क्रिया १२, प्रतीति पूर्वकोत्पन्न क्रोधादि क्रियास्थानु तेह आश्रयी करी ज क्रिया कीधी स प्रातीतिकी १३, समंतइतउ सामस्त्यइतउ उपनिपातु आगमनु स्त्री पशु प्रभृतिकहं जीवहं तणउ जिहां हुयइ सु स्थानु समंतोपनिपातु कहियइ । तिहां ज क्रिया हुयइ स सामंतोपनिपातिकी १४, निसृष्टि सहजु तिणि करी ज 15 क्रिया हुयइ स निसृष्टिकी १५, चिरकाल सेवित पापानुष्ठानविषइ जु स्वभावइतउ अनुज्ञानु स नैसृष्टिकी १५, आपणइ हाथि कीधी स्वाह स्तिकी अतिकोपवसइतउ अन्य पुरुषसाध्य ज क्रिया आपणइ हाथि कीजइ स स्वाहस्तिकी १६, आनयनि करी नीपनी आनयनिकी स पुणि भगवंति वीतरागि भणियां छइं जीवादिकतत्त्व तीहं तणसं आपणी बुद्धि करी अनेरइ प्रकारांतरि करी आनयनु प्ररूपणु तिणि करी निष्पन्न आनयनिकी १७, विदारणु परहं रहइं अप्रकाश्यु हुयइ तेह नउं प्रकाशनु तिणि करी निष्पन्न वैदारणिकी १८, 20 अनवभोगा अप्रत्युपेक्षित अप्रमार्जित दुःप्रमार्जित प्रदेसि अज्ञानभावि शरीरादि निक्षेप लक्षणक्रिया १९, अनवकांक्ष क्रिया जिनोक्तानुष्ठान विषइ प्रमादवशवर्तिता करी अनादर क्रिया २०, प्रयोगु धावन वल्गनादिकु कायव्यापारु । जीवपीडाकारकु परुषवाक्यादिकु वचनव्यापारु। द्रोहेाभिमानादिकु मनोव्यापारु । तेह नइ करणी करी नीपनी प्रायोगिकी २१, समुदानु इंद्रिउ तेह नी क्रिया देशसर्वोपघातरूपु व्यापारु स समुदानक्रिया २२, 'पिज्ज' प्रेम प्रत्ययक्रिया २३, 'दोसे' द्वेष प्रत्ययक्रिया २४, ईरणं ईर्या गमनु तिणि उपलक्षितु 25 पथु मार्गु ईर्यापथु तिहां ज जीवघातादिक क्रिया स ईर्यापथिकी क्रिया कहियइ। २५ ए पंचवीस क्रिया। मन वचन काय त्रिन्हि जोग कहियइं, प्राणातिपात १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ प्रमाणता लक्षण पांच अणुव्रत कहियई । क्रोध मान माया लोभ नाम चत्तारि कषाय कहियइ । फरसन रसन घ्राण चक्षुः श्रवण नाम पांच इंद्रिय कहियइं । सर्व मीलनि बइतालीस आश्रवभेद कहियई। 30 $401) अथ संवरभेद लिखियइं। समिई ५ गुत्ति ३ परीसह २२ जइधम्मो १० भावणा १२ चरित्ताणि ५। पण-ति-दुवीस-दस-चार-पंचभेएहिं सगवन्ना ॥ [४९६] समिति गुप्ति पूर्विहिं जिम भणी तिमहिं जि जाणवी । खुहा १ पिवासा २ सी ३ उण्हं ४ दंसा ५७ चेला ६ ऽरइ ७ त्थिय ८। 35 चरिया ९ निसीहिया १० सिजा ११ अक्कोस १२ वह १३ जायणा १४॥ [४९७ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy