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________________ ९८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$327 - 8329). ३५४ गणविषइ जि के मूं रहई कसाय क्रोध मान माया लोभ रूप दिवस माहि अथवा राति माहि एकत्रवाससंबंधादिकहं कारणहं करी हूया ति कसाय सव्वे सगलाई तिविहेण मनि वचनि काइ करी खामेमि खमावउं । किसउ अथु ? जीहं सउं मूं रहई कसाय हूया तीहं रहइं जउ मूं सउं कसाय हूया हुयई तउ हउं तीहं रहइं खमावडे आपणपा ऊपरि कसाय तींह तणा उपसमाव हउं । पुणि तीहं विषइया कसाय 5 आपणपा मन माहि हूंता उपसमावउं इसउ अथु खामेमि तणउ परमार्थवृत्ति करी जाणिवउ । विशेषइतउ सर्वहीं सउं खामणउं करी न सकियइं । विशेषहं रहइं अनंतत्वइतउ । इणि कारणि सर्वसंग्रहनिमित्तु सामान्यहिं खामणउं करइ ।। 8327) सव्वस्स समणसंघस्सेति । सगलाई पनरह कर्मभूमिगत भगवंत श्रमणसंघ रहइं जु कांईं मई अवहेलादि भावि करी अपराधस्थानु कीधउं सु सगलूं 'अंजलिं करिय” सीसे माथइ हाथ 10 चडावी अंजलि करी 'खमावइत्ता' खमावी करी हउं पुणि खमउं । . $328) तथा सव्वस्स जीवरासिस्सेति । जि पूर्विहिं इरियावही प्रस्तावि भणिया ति सगलाई जीव तीहं तणउ राशि समूहु । तेह रहई भावइतउ आपणा श्रद्धानइतउ धम्मनिहियचित्तो इति दयामूलधर्मविषइ निक्षिप्त निजमनु हूंतउ सगळू अपराधस्थानु खमावी करी हउं पुणि खमउं । ति जीव मूं ऊपरि खमउं कसाय म करउं । हउं पुणि तीहं ऊपरि खमउं कसाय म करउं हउं पुणि तीहं ऊपरि खमउं 15 कसाय नहीं करउं इसउ अथु । 8329) इसउं गाथाथु मनि चीतवतां गाथा पढी करी करेमि भंते आलोयणउं तस्सुत्तरीत्यादि ऋमि चारित्रातिचार दर्शनातिचार ज्ञानातिचार विशुद्धिनिमित्तु काउस्सग्ग त्रिन्हि कीजई । पहिलइ काउस्सग्गि बि लोगस्सुजोयगरे, बीजइ एक, त्रीजइ एक लोगस्सुजोयगरे चीतवियइं । पहिलइ काउस्सग्गि पारियइ लोगस्सुज्जोयगरे, बीजइ पुक्खरवरदीवड्डे, त्रीजइ सिद्धाणं बुद्धाणं कहियइ । छेहि सुयदेवयाए 20 आराधनाथ करेमि काउस्सग्गं इत्यादि भणी काउस्सग्गु कीजइ । नमस्कारु चीतवियइ । श्रुतदेवता स्तुति कही पारियइ। पाछइ क्षेत्रदेवतानिमित्तं करेमि काउस्सग्गं इत्यादि भणी काउस्सगु कीजइ । नमस्कार चीतवियइ । क्षेत्रदेवतास्तुति कही पारियइ । पंचपरमेष्ठि नमस्कारु एकु कही बइसी मुहुंती पडिलेही मंगलादिकारणि बि बानणां दीजई। 'इच्छामो अणुसहि' इसउं कहियइ । एह नउ किसउ अथु ? अनुसृष्टि शिक्षा इच्छामो किसउ अथु वांछउं । गोडिहिलियां होइ नमोऽर्हत् सिद्धेत्यादि कही एक थुई 'जउ गुरे' 25 कही हुई। पाखीदिनि जु त्रिन्हि थुई कही हुई तउ पाछइ संसारदावेत्यादि स्तुति त्रिन्हि । नमोऽस्तु वर्द्धमानायेत्यादि त्रिन्हि स्तुति वर्द्धमानच्छंदोविरचित खरस्वरि उच्चैः स्वरि करी कहियई । पाछइ एकु खमासमणु दे करी कहइ । इच्छाकारेण संदिसह भगवन् स्तोत्रु भणउं । बीजा खमासमणु दे करी भणई इच्छाकारेण संदिसह भगवन् स्तोत्रु सांभलह, गुरि 'भणउ' 'सांभलउ' इसइ भणिइ हूंतइ पाछइ एकु श्रावकु भावसारु मधुरस्वरि सद्भूतगुणगभितु वीतराग स्तवनु महांतु कहइ। बीजा गोडिहिलियां थिका हाथ 30 जोडीए सावधान थिका सांभलई। स्तोत्रानंतरु एकु खमासमणु दे आचार्यमिश्र वांदियइं। बीजउं ख़मास मणु दे करी उपाध्यायमिश्र वांदियई। तइउ खमासमणु दे करी सर्वसाधु वांदियइं एतलइ देवसिउ पडिकमणु संपूर्ण हुयउं । 329) 1 Bh. 326) 8 Bh. उपसामवउं। 6327) 1 B. अंजलि करी। 328) 1 B. उपरि। चीतवीयइ। 2 Bh. हुयई। 3 Bh. जउ । 4 B. adds वा। 5 B. स्तुति त्रिन्हि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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