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________________ $325 ). ३४७] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत चरणीयाविति । इसी परि सिद्धांत माहि पोसहु पर्वदिवसिहिं जि कहिउं छइ। जि केई सदा श्रावक रहइं पोसहु करावई ति अति भूखालू लोक जिम स्वच्छंदभोजन करता व्यवहारभाजन न हुयई । पौषधं च आहारत्याग १, देहसंस्कारत्याग २, अब्रह्मत्याग ३, सावद्यत्याग ४ रूपता करी चतुःप्रकारं भवति । अथ पौषधग्रहणविधि लिखियइ । रात्रि पोसहे प्रतिलेखनावेला समइ उपधि प्रतिलेखना कीजइ। परिधान प्रतिलेखना पुणि कीजइ। पाछइ दिवसि अणआथमियइ हूंतइ मूलपदि पहिलउं इरियावही 5 पडिकमी करी एक खमासमणि 'पोसहमुहुपत्तियं पडिलेहेमि' भणी बीय खमासमणि पोसहमुहुँती पहिलेही करी उभा होई एक खमासमणि 'पोसहं संदिसावेमि' कही बीय खमासमणि 'पोसहं ठाएमि' भणी तइय खमासमणदाणपूर्वकु ऊभा होइ अर्द्धावनतगात्रु हूंतउ मुहबारि मुहुंती दीधी गुरुवचनु अनुभासतउ त्रिन्हिवार नमस्कारभणनपूर्वकु (४०) करेमि भंते! पोसहं, आहारपोसहं सव्वओ देसओ वा। सरीरस-10 कारपोसहं सव्वओ। बंभचेरपोसहं सव्वओ। अव्वावारपोसहं सव्वओ। चउविहे. पोसहे सावजं जोगं पचक्खामि जाव रत्तिं पजुवासामि। दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। ___ एउ पोसहदंडकु त्रिन्हिवार ऊचरइ । तदनंतरु पूर्वरीति करी सामाइकु करइ । इरियावही ज पहिलउं 15 पडिक्कमी छइ सइ जि प्रमाणु कीजइ । वली सामाइकदंडक पाछइ पडिक्कमियइ नहीं। दिनपोसह विधि पुणि लिखियइ । रात्रि तणी पाछिलइ वि घडियइ थाकतइ निद्राच्छेदि पंचपरमेष्ठिनमस्कारस्मरणादि क्रमि कीधइ हूंतइ गृहचिंता मेल्ही करी गाइदोहनवेला समइ साधु समीपि आवी करी अंगपडिलेहण वत्थपडिलेहण करी उच्चारभूमि पडिलेही करी इरियावहियं पडिकमइ । पाछइ पूर्वरीति पोसह मुहुंती पडिलेही करी पोसहु करइ । तदनंतरु सामाइकु करइ । पडिक्कमणा ठाइवा समइ हूयई हूंतइ पडिक्कमणउं करइ । पाछइ साधु 20 जिम एक खमासमणि 'बहुवेलं संदिसावेमि' भणी बीय खमासमणि 'बहुवेलं करेमि' भणइ । आचार्यमिश्र उपाध्यायमिश्र एकि एकि खमासमणि वांदी करी सज्झाउ करइ । प्रतिलेखनासमइ हूयइ हुँतइ एक खमासमणि पडिलेहणं संदिसावेमि भणी बीय खमासमणि 'पडिलेहणं करेमि' इसउ भणइ पाछइ मुहंती पडिलेहइ । पाछइ एक खमासमणि 'अंगपडिलेहणं संदिसावेमि' भणी बीय खमासमणि अंग पडिलेहणं करेमि इसउं भणी मुहुंती पडिलेहइ। पाछइ पहिरणउं पडिलेही स्थापनाचायु पडिलेहइ । त्रिन्हि नमस्कार-25 भणनपूर्वक स्थापनाचार्य स्थापना करी एक खमासमणि मुहुपत्तियं पडिलेहेमि भणी बीय खमासमणु दे मुहंती पडिलेही एक खमासमणि 'ओही पडिलेहणं संदिसावेमि' भणी बीय खमासमणि ओही पडिलेहणं करेमि इसउं भणी एकांति होई ओही पडिलेहइ। संथाराभूमि सोधी पुंजी करी जीव एकांति परिठवइ पाछइ दयापरिणामी वर्तमानु हूंतउ मुखकोसु करी कोमलतृणमय दंडाऊंछणइ करी वसति पउंजइ । काजउ विरलउ करी एकांति परिहरइ। तउ पाछइ इरियावही पडिकमी करी एक खमासमणि 'सज्झायं संदिसावेमि'30 भणी बीयखमासमणि सज्झायं करेमि इसउं भणइ । पाछइ बइसी करी विधिसउं सज्झाउ करइ। जउ गुरुसउं पडिक्कमिउं न हुयई अथवा गुरुसउं पडिक्कमे हूंतइ ज उपधानतपु करतउ हुयइ तउ भवसिंधुकूलि गुरुपादमूलि द्वादशावर्त वांदणउं दियइ। शक्तिसंभवि चउव्विहारु उपवास प्रत्याख्यानु करइ । शक्ति असंभवि सु गुरूपदिष्टु त्रिविधाहारोपवासप्रत्याख्यानु करइ। पाछइ एक खमासमणि 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! $325) 1 Bh. omits. 2 Bh. omits. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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