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________________ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [8295 - $299 ). ३१२ 295) पुरिमड्ड जदपिहिं आगइ छइ तथापिहिं प्रमाणप्रस्तावइतउ ईंहाई जि कहियइ । सु पुणि पुरिमड्डप्रमाणु यंत्रडाइं जि हूंतउं जाणिवउं । अत्र प्रस्तावइतउ पउण पहर पहर सार्द्ध पहरप्रमाणयंत्रटक लिखियई पूर्वार्द्धयंत्रकं च । पउण पहरप्रमाणु जानुछाया' पहरप्रमाणु जानुछाया सार्द्ध प्रहरप्रमाणु तनुछाया प्रहरद्वयप्रमाणु तनुछाया 5 पोसि पाद ४, अंगुल १० आसाढि पाद २ पोसि मासि पाद ९ श्रावणि पाद १ माहि पाद ४, अंगुल ६ श्रावणि पा० २, अंगु० ४ माहमासि पाद ८ भाद्रवइ पाद २ फागुणि पा० ४ भाद्रवइ पा० २, अंगु०८ फागुणमासि पाद ६ आश्विनि पाद ३ चेत्रि पाद ३, अंगुल ८ आश्विनि पाद ३ चैत्रमासि पाद ६ कार्तिकि पाद ४ वैशाखि पाद ३ अंगुल ४ कार्तिकि पा० ३ अंगु० ४ वैशाषि मासि पाद ५ मार्गशीर्ष पाद ५ 10 जेठि पाद २ अंगुल १० मार्गशीर्ष पा० ३ अंगु० ८ जेठमासि पाद ४ पौषि पाद ६ आसाढि पा० ३ अंगुल ६ पौषि पाद ४ आसाढमासि पाद ३ माघि पाद ५ श्रावणि पा० २ अंगुल १० माहि पाद ३ अंगु० ८ श्रावणमासि पाद ४ फागुणि पाद ४ भाद्रवइ पा० ३ अंगुल ४ फागुणि पा० ३ अंगु० ४ भाद्रवइ मासि पाद ५ चैत्रि पाद ३ आश्विनि पा० ३ अंगुल ८ चैत्रि पाद ३ आश्विनि मासि पाद ६ वैशाखि पाद २ 15 कार्तिकि पाद ४ वैशाखि पा० ३ अंगु० ८ कार्तिकि मासि पाद ७ जेठि पाद १ मार्गशीर्षि पाद ४ अंगुल ६ जेठि पाद २ अंगु० ४ मार्गशीर्ष मासि पाद ८ आसाढि शून्य० $296) सांप्रतु थाकतउं सूत्रु वखाणियइ-पच्छन्नेणं कालेणं' काल रहइं प्रच्छन्नता मेघ-धूलिपर्वतहं करी सूर्यि छाइ' हूंतइ जाणिवी। सूर्यि अणदीसतइ पहरि अणपूगइ उद्देसइतउ पूगउ जाणी जीमतां हूंता भंगु न होइ जिम इणि कारणि 'पच्छन्नेणं कालेणं' आकारु कहियइ । 20 जीमतां हूंता प्रकाशादिकहं करी पहरि अणपूगई जाणिइ हूंतइ मुह हूंतउ आहारु रक्षा माहि घाती हाथ नउ भाणइ मूंकी तिमहीं जि बइठां रहिवउं तां जां पहरु पूजइ, पहरि पूगइ नमस्कारु मन माहि समरी करी आघउं भोजनु करिवउं। इसी परि दिसामोहि पुणि जेतीवार दिसामोहइतउ पूर्व पश्चिम करी जाणी पहरु पूगइ इसी बुद्धि करी जीमइ, दिसामोहि ऊतरीइ तां रहइ जां पहरु पूजइ, पहरि पूगइ आघउं जीमइ । $297) 'साहुवयणेणं' ति साधुवचनु 'उग्घाडा पोरिसी' इसउं सांभली करी भोलपणइ पहरु 25 पूगउ जाणी जीमइ, जीमताई भंगु नहीं, तउ जउ को कहइ नहीं। जउ को कहइ पउण पहर नी पडिलेहण करिवा कारणि साधु जनु 'उग्घाडा पोरिसी' पढइ, पोरिसी अजी नथी हुई इति इसउं सांभली जां पोरिसी पूजइ तां तिमहीं जि रहइ पहरि पूगइ जीमइ ।। $298) पोरिसी कीधी जेतीवार गाढी सूलादिवेदना ऊठइ तेतीवार सर्वसमाधिनिमित्तु औषधादिकु कीजइ तिणि कारणि सव्वसमाहिवत्तियाऽऽगारु । सर्व समाधि प्रत्यउ कारणु जेह रहइं हुयइ सु सर्व 30 समाहिवत्तियाऽऽगारु॥ $299 ) (३२) सूरे उग्गए पुरिमर्दु पञ्चक्खामि चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थ० सहसा० पच्छन्न० दिसा० साहु० महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। $295) 1 Bh. omits. $296) 1 Bh. छायइ । 2 Bh. अपूगइ। 3 Bh. जाणियइ। 4 Bh. उतरिइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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