SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$184 - 197). २०८ $184) गृहस्थि आपणा अथवा अनेरा गाम हूंतउं आणी करी साधु रहइं जु दीजइ सु अभ्याहृतु कहियइ ११ । 8185) घडउ अथवा कूडी जोगिणी माटी छाणि करी लीपी मेल्ही हुयइ', यति तणइं कारणि ऊघाडी करी जु दीजइ सु उद्भिन्नु कहियइ १२ । 8 186) ऊपरि छींकइ, हेठि भूमिहरि उभय बिहुं हेठि ऊपरि यथा मोटेरी गुडही हुयइ तेह माहि वस्तु हुयइ सु वस्तु ऊपहरां होई हेठां हुईयइ तउ आपडियइ इणि कारणि उभउ कहियइ । तिर्यग् तिरिछउं हाथ हूंतउं वेगलउं वस्तु हुयइ करग्रहण अशक्यु जु ले करी विहरावइ सु मालाभ्याहृतु कहियइ १३ । $187) स्वामी अथवा चोरु पर कन्हा ओदाली करी साधु रहइं जु दियइ सु आच्छेद्यु कहियइ १४ । 8188) अनेकह रहइं भक्षु' कीधउ हुयइ तीह माहि एकु दियइ सु अनिसृष्टु कहियइ १५ । $189) मूलारंभि आपणइ कारणि कीधइ हूंतइ पाछइ जावंतिक-यति-पाखंडिकहं निमित्तु तंदुला दिकु जु ओयरइ सु अध्यवपूरकु कहियइ १६ । ___ इसी परि संक्षेपिहिं सोल उद्गमदोष गृहस्थकृत कहिया ॥ $190) अथ उत्पादनादोष' सोल लिखियई-धात्री १, दूति २, निमित्त ३, आजीविका ४, 15 वनीपक ५, चिकित्सा ६, क्रोध ७, मान ८, माया ९, लोभ १०, पूर्वपश्चात्संस्तव ११, विद्या १२, मंत्र १३, चुन्न १४, योग १५, मूलकर्म १६, ए सोल उत्पादनादोष नाम । बालस्स खीर-मजण-मंडण-किलावणंकघाइत्तं । करिय कराविय वा जं लहइ जई धाइपिंडो सो ॥ [२०८] $191) क्षीरधात्री १ मजनधात्री २ मंडनधात्री ३ क्रीडापनधात्री ४ अंकधात्री ५, बालक 20 रहई पंचधात्री हुयई तीहं नउं कर्मु करी अथवा करावी यति जु अशनादिकु लहइ सु धात्रीपिंडु कहियइ १। $192) प्रकटु अथवा छानउ संदेसउ कही करी यति जु पिंडु अशनादिकु लहइ सु दूतिपिंडु कहियइ २। 193) निमित्त शुभाशुभ लाभालाभादिक कही करी यति जु पिंडु लहइ सु निमित्तपिंडु कहियइ ३। 25 194) जात्यादिधनहं रहइं आपणपउं तज्जातीयादि जाणावी करी जु पिंडु यति लहइ सु आजीविकापिंडु ४ । $195) ब्राह्मणादि भक्त जि हुयई तीहं रहई ब्राह्मणादि भक्तु आपणपउं दिखाली करी तीहं कन्हां' यति जु लहइ सु वनीपकपिंडु ५। $196) औषध-वैद्याद्युपदेशदानादि चिकित्सा आहारादिकारणि करी गृहस्थ कन्हां जु पिंडु 30 यति लहइ सु चिकित्सापिंडु ६ । $197) विद्यातपःप्रभावु नृपादिपूजा शापादिकु क्रोधफल देखी करी यति हूंतउ बीहतउ गृहस्थु जु पिंडु दियइ सु क्रोधपिंडु ७ । 8185) 1 Bh. मेल्हीयइ । $188) 1 Bh. भक्तु । $190) 1 B. -उत्पातना-! $195) 1 Bh. कन्हें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy