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विधिप्रपा एसो परमेहीणं पंचण्ह वि भावओ नमोकारो। सबस्स कीरमाणो पावस्स पणासणो होइ ॥ ६॥ भुवणे वि मंगलाणं मणुयासुरअमरखयरमहियाणं । सवेसिमिमो पढमो होइ महामंगलं पढमं ॥७॥ चत्तारिमंगलं मे हुतु रहंता तहेव सिद्धा य । साहू अ सबकालं धम्मो य तिलोअमंगल्लो ॥८॥ चत्तारि चेव ससुरासुरस्स लोगस्स उत्तमा हुति । अरहंत-सिद्ध-साहू धम्मो जिणदेसियमुयारो॥९॥ चत्तारि वि अरहंते सिद्ध साहू तहेव धम्मं च । संसारघोररक्खसभएण सरणं पवनामि ॥१०॥ अह अरहओ भगवओ महह महावीरवद्धमाणस्स । पणयसुरेसरसेहरवियलियकुसुमचियकमस्स ॥११॥ जस्स वरधम्मचकं दिणयरबिंब व भासुरच्छायं । तेएण पजलंतं गच्छइ पुरओ जिणिंदस्स ॥ १२ ॥ आयासं पायालं सयलं महिमंडलं पयासंतं । मिच्छत्तमोहतिमिरं हरेइ तिण्हं पि लोयाणं ॥१३॥ सयलम्मि वि जीयलो' चिंतियमेत्तो करेह सत्ताणं । रक्खं रक्खस-डाइणि-पिसाय-गह-जक्ख-भूयाणं ॥ १४ ॥ लहइ विवाए वाए ववहारे भावओ सरंतो य । जूए रणे य रायंगणे य विजयं विसुद्धप्पा ॥१५॥ पचूस-पओसेसुं सययं भवो जणो सुहज्झाणो। एवं झाएमाणो मुक्खं पइ साहगो होइ ॥ १६ ॥ वेयाल-रुद्द-दाणव-नरिंद-कोहंडि-रेवईणं च ।। सवेसि सत्ताणं पुरिसो अपराजिओ होइ ॥१७॥ विजु व पजलंती सवेसु वि अक्खरेसु मत्ताओ। पंच नमोक्कारपए इविक्के उवरिमा जाव ॥ १८ ॥ ससिधवलसलिलनिम्मलआयारसहं च वणियं बिंदुं । जोयणसयप्पमाणं जालासयसहसदिप्पंतं ॥ १९॥ सोलससु अक्खरेसुं इकिक अक्खरं जगुज्जोयं । भवसयसहस्समहणो जंमि ठिओ पंच नवकारो ॥ २०॥ जो थुणति हु इकमणो भविओ भावेण पंचनवकारं । सो गच्छह सिवलोयं उज्जोयंतो दसदिसाओ ॥२१॥ तव-नियम-संजमरहो पंचनमोकारसारहिनिउत्तो। नाणतुरंगमजुत्तो नेइ फुडं परमनिवाणं ॥२२॥
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