SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११३ विधिमा महियजलेण तो अहवागसबोसहीजलेणं ।। गंधजलेणं तह पचरवाससलिलेण च हवंति ॥6॥ चंदणजलेण कुंकुम-जलकुंभेहिं च तित्थसलिलेणं । सुद्धकलसेहिं पच्छा गुरुणा अभिमंतिएहिं तहा ॥१॥ पहाणाणं सवाण वि जलधारापुप्फधूवगंधाई। दायवमंतराले जावंतिमकलसपत्थावो ॥१०॥ एवं पहविए बिंबे नाणकलानासमाचरिज गुरू । तो सरससुयंघेणं लिंपिज्जा चंदणदवेणं ॥११॥ कुसुमाइसुगंधाइं आरोवित्ता ठविज बियपुरो। नंदावत्तयवर्ट पूइज्जइ चारुदत्वेहिं ॥१२॥ चंदणच्छडुब्भडेणं वत्थेणं छायए तओ पढें । अह पडिसरमारोवे जिणबिंबे रिद्विविद्धिजुयं ॥ १३ ॥ तो सरससुयंधाई फलाई पुरओ ठविज बिंबस्स । जंबीरबीजपूराइयाइं तो दिज गंधाई ॥१४॥ मुद्दामंतन्नासं बिंबे हत्थंमि कंकणनिवेसं । मंतेण धारणविहिं करिन बिम्बस्स तो पुरओ ॥१५॥ बहुविहपकनाणं ठवणा वरवेहिगंधपुडियाणं । वरवंजणाण य तहा जाइफलाणं च सविसेसं ॥१६॥ सागिक्खूवरसोलयखंडाईणं वरोसहीणं च। संपुन्नबलीइ तहा ठवणं पुरओ जिणिदस्स ॥१७॥ घयगुडदीवो सुकुमारियाजुओ चउ जवारय दिसीसु। बिंबपुरओ ठविजा भूयाण बलिं तओ दिजा ॥१८॥ आरत्तियमंगलदीवयं च उत्तारिऊण जिणनाहं । वंदिजऽहिवासणदेवयाइ उस्सग्गथुइदाणं ॥ १९ ॥ अह जिणपंचंगेसु ठावेइ गुरू थिरीकरणमंतं । वाराउ तिन्नि पंच य सत्त य अचंतमपमत्तो ॥ २०॥ मयणहलं आरोवइ अहिवासणमंतनासमवि कुणइ । झायइ य तयं बिंब सजियं व जहा फुडं होइ ॥ २१ ॥ एवमहिवासियं तं बिंब ठाइज सदसवत्थेणं । चंदणछडभडेणं तदुवरि पुप्फाई विखिविजा ॥ २२ ॥ पहाविज सत्तधन्नेण तयणु जीवंतउभयपक्खाहिं। नारीहिं चउहिं समलंकियाहिं विजंतनाहाहि ॥ २३ ॥ पडिपुण्णवत्तसुत्तेणं वेढणं चउगुणं च काऊण । ओमिणणं कारिजा तुडेहिं हिरण्णदाणज्यं ॥ २४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy