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विधिप्रपा।
तह मण-वइ-काएहिं करितु विप्पियसयाई तुह समणा । तेसु तुमं तु पियं चिय करिज मा विप्पियलवं ति ॥ ३०॥ निग्गहिऊण अणक्खे अकुंणतो तह य एगपक्खित्तं । साहम्मिएसु समचित्तयाइ सवेसु वहिजा ॥ ३१ ॥ सवजणबंधुभावारिहं पि इकस्स चेव पडिबद्धं । जो अप्पाणं कुणई तओ विमूढो हु को अन्नो ॥ ३२॥ एवं च कीरमाणे होही तुह भुवणभूसणा कित्ती। एत्तो चेव य चंदं पडुच्च केणावि जं भणियं ॥ ३३ ॥ 'गयणंगणपरिसक्कणखंडणदुक्खाई सहसु अणवरयं । न सुहेण हरिणलंछण ! कीरइ जयपायडो अप्पा' ॥ ३४ ॥ अविणीए सासिंतो कारिमकोवे वि मा हु मुंचिजा। भद्द ! परिणामसुद्धिं रहस्समेसा हि सवत्थ ॥ ३५ ॥ उप्पाइयपीडाण वि परिणामवसेण गइविसेसो जं। जह गोव-खरय-सिद्धत्थयाण वीरं समासज्ज ॥ ३६॥ अइतिक्खो खेयकरो होहिसि परिभवपयं अइमिऊ य । परिवारंमि सुंदर ! मज्झत्थो तेण होज तुमं ॥ ३७॥ स-परावायनिमित्तं संभवइ जहा असीअ परिवारो। एवं पहू वि ता तयणुवत्तणाए जएज्ज तुमं ॥ ३८॥ अणुवत्तणाइ सेहा पायं पावंति जोग्गयं परमं । रयणं पि गुणोकरिसं पावइ परिकम्मणगुणेण ॥ ३९ ॥ इत्थ उपमायखलिया पुत्वम्भासेण कस्स व न होति। जो तेऽवणेइ सम्मं गुरुत्तणं तस्स सहलं ति ॥४०॥ को नाम सारही णं स होज जो भद्दवाइणो दमए । दुढे वि हु जो आसे दमेइ तं सारहिं विंति ॥४१॥ को नाम भणिइकुसलो वि इत्थ अच्चन्भुयप्पभावम्मि । गणहरपए पइपयं सखुवएसे खमो वुत्तुं ॥ ४२ ॥ परमित्तियं भणामो जायइ जेणुण्णई पवयणस्स । तं तं विचिंतिऊणं तुमए सयमेव कायचं ॥४३॥ सीसाणुसासणे वि हु पारद्धे अह इमं तुम पि खणं । वणिज्जंतं जइपहु ! पहिचित्तो निसामेहि ॥ ४४ ॥ बजेह अप्पमत्ता अज्जासंसग्गिमग्गिविससरिसं।
अजाणुचरों साहू पावह वयणिजमचिरेण ॥ ४५ ॥ 1 BC गोचरचरय। 2 BC जाते। 3 'भद्रवाजिनः' इति A टिप्पणी। 4 B °संसरगमगि । 5A अजाणुवरिं; B अब्बाणुवसे।
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