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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -५/-/७१८ मू. (७१८) सज्झाय-झाण-निए धोरतव-चरण-सोसिय-सरीरे ।
गय-कोह-मान-कइयव-दूरुज्झिय-राग-दोसे य ॥ मू. (७१९) विनओवयारकुसले सोलसविह-वयण-भासणे कुसले ।
निरवज-वयण-भणिरे न य बहु-भणिरे न पुनऽभणिरे ।। मू. (७२०) गुरुणा कञ्जमकञ्जे खर-कक्कस-फरुस-निगुरमणिहूं ।
भणिरे तह त्ति इत्थं भणंति सीसे-तयं गच्छं।। मू. (७२१) दूरुज्झिय-पत्ताइसु ममत्तए निप्पिहे सरीरे वि ।
जाया-मायाहारे बायालीसेससणा कुसले ।। मू. (७२२) तंपिन रूव-रसत्यं भुंजंताणं न चेव दप्पत्थं ।
अक्खोवंग-निमित्तं संजम-जोगाण वहणत्थं ॥ मू. (७२३) यण-वेयावच्चे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए।
तह पान-वत्तियाए छटुं पुन धम्म-चिंताए॥ मू. (७२४) अपुब्व-नाण-गहणे थिर-परिचिय-धारणेक्कमुजुत्ते।
सुतं अत्थं उभयं जाणंति अनुट्टयंति सया।। मू. (७२५) अट्ठठ्ठ-नाण-दसण-चारित्तायार-नव-चउक्कम्मि।
अनिगूहिय-बल-विरिए अगिलाए धनियमाउत्ते। मू. (७२६) गुरुणा खर-फरुसाणिट्ठदुट्ठ-निट्ठर-गिराए सयहुत्तं ।
भणिरे नो पडिसूरि ति जत्थ सीसे तयं गच्छं। मू. (७२७) तवसा अचित-उप्पन्न-लद्धि-साइसय-रिद्धि-कलिए वि।
__ जत्थ न हीलेंति गुरु सीसे तंगोयमा गच्छं॥ मू. (७२८) तेसहि-ति-सय-पावाउयाण विजया विद्वत्त-जस-पुंजे।
जस्थ न हीलेंति गुरुं सीसे तं गोयमा गर्छ । मू. (७२९) जत्थाखलियममिलियं अव्वाइद्धं पि सुय-नाणं।
विनओवहाण-पुव्वं दुवालसंगं पिसुय-नाणं ।। मू. (७३०) गुरु-चलण-भत्ति-भर-निभरेक्क-परिओस-लद्धमालावे ।
अन्झीयंति सुसीसा एगग्गमणा स गोयमा गच्छं।। मू. (७३१) सि-गिलाण-सेह-हालाउलस्स गच्छस्स दसविहं विहिणा।
कीरइ वेयावच्चं गुरु-आणत्तीए तं गच्छं। मू. (७३२) दस-विह-सामायारी जत्थढिए भव्व-सत्त-संघाए।
सिझंति य बुज्झंति यन य खंडिजइ तयं गच्छे । मू. (७३३) इच्छा मिच्छा तहक्कारो आवस्सिया य निसीहिया।
आउंछणायपडिपुच्छा छंदना य निमंतणा ॥
उवसंपया य काले सामायारी भवे दस-विहाउ॥ मू. (७३४) जत्थ य जिट्ठ-कनिट्ठो जाणिजइ जेठ्ठ-विनय-बहुमाणं ।
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