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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -३/-1५५६
उब्वेविय संतत्तो अनंतहुत्तो सुबहुकालं ॥ मू. (५५७) दुग्गंधाऽमेज्झ-चिलीण-खार-पित्तोज्झ-सिंभ-पडहच्छे ।
वस-जलुस-पूय-दुद्दिण-चिलिचिल्ले रुहिर-चिक्खल्ले । मू. (५५८) कढ-कढ-कढंत चल-चल-चलस्स टल-टल-टलस्स रझंतो।
संपिडियंगमंगोजोणी-जोणी वसे गब्मे॥ एकेक गब्म-वासेसुजंतियंगो पुनरवि भमेजा ॥ ता संतावुब्वेग-जम्म-जरा-मरण-गब्म-वासाई।
संसारिय-दुक्खाणं विचित्त-रूवाण भीएणं॥ मू. (५६०) भावत्थवानुभावं असेस-भव-भय-खयंकरंनाउं।
तत्येव महंता भुजमेणं दढमचंतपयइयव्वं ॥ मू. (५६१) इय विज्ञाहर-किन्नर-नरेण ससुराऽसुरेण विजगेण ।
संथुव्वंते दुविहत्यवेहिं ते तिहुयणेक्कीसे ।। मू. (५६२) गोयमा धम्मतित्यकरे जिने अहरते।
अह तारिसे विइटी-पवित्थरे सयल-तिहुयणाउलिए ।
साहीणे जग-बंधू मनसा विनजे खणं लुद्धे ।। मू. (५६३)
तेसिं परमीसरियं रूव-सिरी-वन्न-बल-पमाणंच ।
सामत्यं जस-कित्ती सुर-लोग-चुए जहेह अवयरिए। भू. (५६४) जह काउणऽन-भवे उगतवं देवलोगमनुपत्ते ।
तित्थयर-नाम-कम्मंजह बद्धंएगाइ-वीसइ-थाणेसु॥ मू. (५६५) जह सम्मत्तं पत्तं सामन्नाराहणा य अन्न-भवे ।
जह यतिसला उ सिद्धत्थ-धरिणी चोद्दस-महा-सुमिण-लंभ। मू. (५६६) जह सुरहि-गंध-पक्खेवगम-वसहीए असुहमवहरणं ।
जह सुरनाहो अंगुट्ठपव्वं नमियं महंत-भत्तीए। मू. (५६७) अमयाहारं भत्तीए देइ संथुणइ जाव य पसूओ।
जह जाय-कम्म-विनिओग-कारियाओ दिसा कुमारीओ ।। मू. (५६८) सव्वं निय कत्तव्वं निव्वत्तंती जहेव भत्तीए।
बत्तीस-सुर-वरिंदा गरुय-पमोएण सव्व-रिद्धीए॥ मू. (५६९) रोमंच-कंचु-पुलइय-भत्तिब्भर-मोइय-सगते ।
मन्ते सकयत्थं जम्मं अम्हाण मेरुगिरि-सिहरे॥ मू. (५७०) होही खणं अप्फालिय-सूसर-गंभीर-दुंदुहि-निग्घोसा।
जय-सद्द-मुहल-मंगल-कयंजली जह य खीर-सलिलेणं ।। मू. (५७१) बहु-सुरहिं-गंधवासिय-कंचण-मणि-तुंग-कलसेहिं।
जम्माहिसेय-महिमं करेंति जह जिनवरो गिरिं चाले।। मू. (५७२) जह इंदं वायरणं भयवं वायरइ अट्ट-वरिसो वि।
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