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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -८(२)/-1१५२७
उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विजा सव्वगओ ण् इत्य् अअरगप्अ अरगअओ होइ उवढू अ अ व नण अ अ गणस्स वा अण् उ ण ण् आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा (नित्थारगो पारगो होइ)
जे णं कप्पसमत्तीए विजा अभिमंतिऊणं विग्यविणाइगा आराहंति सूरे संगामे पविसंतो अपराजिओ होइ जिनकप्प-समत्तीए विज्जा अभिमंतिऊण खेमवहणी मंगलवहनी भवति । मू. (१५२८) चत्तारि सहस्साइं पंचसयाओ तहेव चत्तारि।
सिलोगा विय महानिसीहम्मि पाएण।।
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३९ | षष्ठंछेदसूत्रं-महानिशीथं समाप्तम्
मुनि दीपरल सागरेण संशोधिता सम्पादिता महानिशीथ-छेदसूत्र- (मूल) परिसमाप्तं
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