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अध्ययनं :७, (चूलिका-१)
२४९ पसूए निम्मेरे पाव-सीले दुजाय-जम्मे सुरोद्द-पयंडाभिग्गहिय-दूर-महामिच्छदिट्ठी भविंसु से भयवं कहं ते समुवलक्खेजा गोयमा उस्सुत्तुम्मग्ग-वत्तनुद्धिसण-अनुमइ-पच्चएणं ।
मू. (१३९२) से भयवंजेणं गणी किंचि आवस्सग्गंपमाएज्जा गोयमा जेणंगणी अकारणिगे किंचि खणमेगमवि पमाए से णं अवंदे उवदिसेजा जे इ णं तु सुमहा कारणिगे वि संत गणी खणमेगमवी न किंचि निययावस्सगं पमाए से णं वंदे पूए दट्ठव्वे जाव णं सिद्धे बुद्धे पार-गए खीणट्ठकम्ममले नीरए उवइसेजा सेसं तुमहया पबंधेन स-हाणे चेव माणिहिइ। भू. (१३९३) एवं पच्छित्तविहिं सोऊणानुकृती अदीन-मनो।
झुंजइ य जहा-धामंजे से आराहगे भणिए ।। मू. (१३९४) जल-जलण-दुट्ठ-सावय-चोर-नरिदाहि-जोगिणीण भए ।
तह भूय-जक्खरक्खस्स-खुद्दपिसायाण मारीणं ।। म. (१३९५) कलि-कलए विग्घ-रोहग-कंताराडइ-समुद्द-मज्झे वा।
___ दुचिंतिय अवसउणे संभरियव्वा इमा विजा ।। मू. (१३९६) प्अअए ह इम्, अण्अम् अण्उज् अम्धअन् इ उम्म् एह इ म्त् इव् इक्क् अम् उन्आ ह ह ह्इम्प्अव्व् अन् आ भ् उह् इअएह अउ भ् उ ए इम्म्अ उ उ उ अण् उ, म् अत्य अइद् एउअन् अम्त् उ एइम् अत् थ् अस्इ क्ख् अण् अम्ध् एम्प्पइस स्अम्
(पाएहिं जणदणु जंघ निउम्मेहिं तिविक्कम नाहिहिं पव्वनामुहियए हरु भएहिं महुसूदणु
मत्थइ देइ अनंतु एहिं अत्थ सिक्खणं धेप्पिस्स) यअस्एई, जण्आम् दे ण् उ अन्न हा न इउम्म्ए इइम्त इवइकमउन्आह ए हुइम् पव्वाण्आ गओ इह अए हर्उ ह इम्म ह सु उ उ अण् उम्व इद ए ओ आ ण् अ म्च उ ए हम् इम् इ म् वट्टइ सुख्क् अल् अम्घ एपइसस अम् च उ
तओ एयाए पवर-विजाए विहीए अत्ताणगं समहिमंतिऊण इमे य सत्तक्खरे उत्तमंगोभयंखंध-कुच्छी चलणतलेसु नसेज्जा तंजहा-अउम् (ओं) उत्तमंगेउ (कु) वाम-खंध-गीवाए 3 (रु) वाम कुच्छीए क् उ (कु) वाम चलणयले ल् ए (ले) दाहिण चलणयले (स अ आ (स्वा) दाहिण-कुच्छीए ह अ अ- (हा) दाहिण-खंध-गीवाए। मू. (१३९७) दुसुमिण-दुन्निमित्ते गह-पीडीवसग्ग-मारि-रिट्ठ-भए।
__ वासासणिविजूए वायारी महाजन-विरोहे। मू. (१३९८) जंचत्थि भयं लोगे तं सव्वं निद्दले इमाए विजाए।
सण्हद्धे मंगलयरे रिद्धियरे पावहरे सयलवरक्खयसोक्खदाई॥
___ काउमिमे पच्छित्तेजइ न तुणं तब्भवे सिझे ॥ मू. (१३९९) ता लहिऊण विमाणगई सुकुलुप्पत्तिं दुयं च पुणो बोहिं । सोक्ख परंपरएणं सिझे कम्मटुं बंधरयमलविमुक्के ।।
गोयमो ति बेमि
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