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अध्ययनं:७, (चूलिका-१) मू. (१४६८) बेइंदिय-तेइंदिय-चउरो-पंचेदियाण जीवाणं ।
संघट्टण-परियावणकिलावणोद्दवण मा कासी। मू. (१४६९) आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्तं संविग्गो ।
उत्तम ठाणम्मि ठिओ सावजं मा भणिज्जासु॥ मू. (१४७०) आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो।
लोयट्टेण विभूई गहिया गिहि उक्खिविउ ऽदिना ॥ मू. (१४७१) आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त संविग्गो।
जो इथि संलवेज्जा गोयमा कत्थ स सुज्झिही॥ मू. (१४७२) आलोइय-निंदिय-गरहिओ विकय-पायच्छित्त नीसल्लो।
चोद्दस-धम्मुवगरणं उड्डे मा परिग्गरं कुज्जा ॥ मू. (१४७३) तेसिं पि निम्ममत्तो अमुच्छिओ अगढिओ दढं हविया।
अह कुजा उ ममत्तं ता सुद्धी गोयमा नत्थि ॥ मू. (१४७४) किंबहुना गोयमा एत्थ दाऊण आलोयणं ।
रयणीए आविए पानं कत्थ गंतुं स सुज्झिही ।। मू. (१४७५) आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि काय-पायच्छित्त नीसल्लो ।
छाइक्कमे न रक्खे जो कत्थ सुद्धि लभेज सो॥ . मू. (१४७६) अप्पसत्थे य जे भावे परिणामे य दारुणे।
पाणाइवायस्स वेरमणे एस पढमे अइक्कमे॥ मू. (१४७७) तिव्व-रागा यजा भासा निट्ठर-खर-फरुस-कक्कसा।
मुसावायस्स वेरमणे एस बीए अइक्कमे॥ मू. (१४७८) उग्गहं अजाइत्ता अचियत्तम्मि अवगरहे ।
अदत्तादानस्स वेरमणे एस तइए अइक्कमे॥ मू. (१४७९) सद्दा रूवा रसा गंधा फासाणं पवियारणे।
मेहुणस्स वेरमणे एस चउत्थइक्कमे ॥ मू. (१४८०) इच्छा मुच्छा य गेही य कंखा लोभे य दारुणे।
परिग्गहस्स वेरमणे पंचमगे साइक्कमे ।। मू. (१४८१) अइमित्ताहारहोइत्ता सूर-खेत्तम्मि संकिरे।
राई-भोयणस्स वेरमणे एस छठे अइक्कमे ॥ मू. (१४८२) आलोइय-निंदिय-गरहिओ वि कय-पायच्छित्त नीसल्लो।
जयणं अयाणमाणो भव-संसारे भमे जहा सुसढो । मू. (१४८३)भयंव को उन सो सुसढो कयरा वा सा जयणा जं अजानमानस्स णं तस्स आलोइय-निंदिय गरहिओ विकय-पायच्छित्तस्स वि संसारंनो विणिट्ठियं तिगोयमा जयणा नाम अट्ठारसण्हंसीलंग सहस्साणंसत्तरस-विहस्सणंसंजमस्स चोद्दसण्हंभूय-गामाणं तेरसण्हं किरियाठाणाणं सबज्झमंतरस्स णं दुवालस-विहस्स णं तवोनुट्ठाणस्स दुवालसाणं भिक्खू-पडिमाणं Jain Education International
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