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________________ महानिशीथ - छेदसूत्रम् -७ (१)/-/१३७६ मू. (१३७६) से भयवं कइविहं पायच्छित्तं उवइटुं गोयमा दसबिहं पायच्छित्तं उवइट्टं तं च अनेगहा जाव णं पारंचिए । २४० मू. (१३७७) से भयवं केवइयं कालं जाव इमस्स णं पच्छित्त-सुत्तस्सानुट्ठाणं वट्टिही गोयमा जाव णं कक्की नाम रायाणे निहणं गच्छिय एक्क-जियाययण-मंडियं वसुहं सिरिप्पभे अनगारे भयवं उड्डुं पुच्छा गोयमा उड्डुं न केइ एरिसे पुन्न-भागे होही जस्स णं इणमो सुयक्खंधं उवइसेज्जा मू. (१३७८) से भयवं केवइयाई पायच्छित्तस्स णं पयाइं गोयमा संखाइयायं पायच्छित्तस्स णं पयाइं से भयवं तेसिं णं संखाइयाणं पायच्छित्तस्स पयाणं कि तं पढणं पायच्छित्तस्स णं पयं गोयमा पइदिन - किरियं से भयवं किं तं पइदिण-किरियं गोयमा जं अनुसमयं अहन्निसा - पाणोवरमं जाव अनुट्ठेयव्वाणि संखेज्जाणि आवस्सगाणि से भयवं केणं अद्वेणं एवं वुच्चइ जहा णं- आवास्सागाणि गोमा असेस -कसिण-कम्म कक्खयकारि- उत्तम सम्म दंसण-नाण-चारित - अच्चंत - घोर-वीरुग्ग कट्ठ- सुदुक्कर-तव-साहणट्ठाणए परुविज्ज्रंति नियमिय विभत्तुद्दिट्ठ-परिमिएणं काल-समएणं पयंपएणं अहन्निस अनुसमयं आजम्मं अवस्सं एव तित्थयराइसु कीरंति अनुट्ठिांति उवइसिजंति परूविज्रंति पत्रविति सययं एएणं अद्वेणं एवं बुच्चइ गोयमा जहा णं-आवस्सगाणि तेसिं च णं गोयमा जे भिक्खू कालाइकमेणं वेलाइक्कमेणं समयाइक्कमेणं अलसायमाणे अनोवउत्त-पमत्ते अविहीए अन्नेसिं च असद्धं उप्पायमाणे अन्नयरमावस्सगं पमाइय-पमाइयं संतेनं बल-वीरिएणं सात- लेहडत्ताए आलंबणं वा किंचि धेत्तूणं चिराइउं पउरिया नो णं जहुत्तयालं समनुट्ठेज्जा से णं गोयमा महापायच्छित्ती भवेज्जा । मू. (१३७९) से भयवं किं तं बितियं पायच्छित्तस्सणं पयं गोयमा बीयं तइयं चउत्थं पंचमं जावणं संखाइयाई पच्छित्तस्स णं पयाइं ताव णं एत्थं च एव पढम-पच्छित्त-परूअंतरोवगायाई समनुविंदा से भयवं केण अट्ठेणं एवं बुच्चइ गोयमा जओ णं सव्वावस्सग-कालानुपेही भिक्खू णं रोद्दट्टज्झाण-राग-दोस-कसाय-गारव-ममाकाराइसुंणं अनेग-पमायालंबणेसु सव्व-भाव-भावतरंतर रेहिणं अचंत्तं विप्पमुक्को भवेज्जा केवलं तु नाण-दंसण चारित्त तवोकम्म-सज्झायज्झायणसद्धम्मा-वस्सगेसु अभिरमेज्जा ताव णं सुसंवुडासव-दारे हवेज्जा जाव णं सुसंवडासव-दारे हवेज्जा तावणं सजीव - वीरिएणं अनाइ-भव-गहणं संचियाइट्ठ- दुट्ठ-ट्ठ-कम्मरासीए रूगंत-निट्ठवणेक-बद्धलक्खो अनुकमेण निरुद्ध-जोगी भवित्ताणं निद्दद्धासेस- कम्मिंधणे विमुक्क-जाइ-जरा-मरण-चउगइसंसार- पास बंधणेय सव्व- दुक्ख विमोक्ख तेलोक्कं-सिहर-निवासी भवेज्जा एएणं अट्टेणं गोयमा एवं वच्चइ जहा णं एत्थं चेव पढम एवं अवसेसाइं पायच्छित्तं पयाइं अंतरोवगयाई समनुविंदा । मू. (१३८०) से भयवं कयरे ते आवस्सगे गोयमाणं चिइ-वंदनादओ से भयवं कम्ही आवस्सगे असइ पमाय-दोसेणं कालाइक्कमिए वा वेलाइक्कमिए इ वा समयाइक्कमिए इ वा अणनोवउत्तपत्ते इ वा अविहीएसमनुट्ठिएइ वा नो णं जहुत्तयालं विहीए सम्मं अनुट्ठिए इ वा असंपडिए इ वा विच्छंपडिए इ वा अकए इ वा पमाइए इ वा केवतियं पायच्छित्तं उवइसेज्जा गोयमा जे केई भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजय - विरय-पडिहय-पच्चक्खायपाव- कम्म दिक्खा दिया- पभईओ अनुदियहं जावज्जीवाभिग्गहेणं सुविसत्थे भत्ति-निब्भरे जहुत्त-विहीए सुत्तत्थं अनुसरमाणेण अनन-मानसेगग्ग-चित्तग्गय- माणस - सुहज्झवसाए थय - थइहिं न तेकालियं चेइए वंदेज्जा तस्स णं एगाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003327
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages292
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashashrutaskandh, agam_jitkalpa, & agam_mahanishith
File Size6 MB
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