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________________ ૭૦ स्तुति तरंगिणी गन्मे जम्मि गयंमि निम्मलगुणे नाणं धरंते तहा, लोयालोयपहाकरे दस दिसोजोयं कुणंते खणा । जाया पुव्वदिसव्व झत्ति जणणी अंतोवर्हि चुजला, सो देवो सुमइ विहेउ सुमणो भव्वाण भव्वाणणो ॥५॥ जो स्थंबेर महत्थ - सुत्थिय-भुओ भात भामंडलो, रत्तासोय - पवाल - कोमलकरो विस्थिन्नवच्छत्थलो । लच्छी कीत्तिकरो नरोरगधुओ देवी- सुसीमासुओ, हुआ मे परिपक्कविदुमवणच्छाओ सुछट्ठो जिणो ॥ ६ ॥ उम्मीलंत-महंत - कंति - कविता सिज्झतवो-मंगणा, सीसे जस्स सहति फारमणिणो पंचप्पमाणा फणा । सोऽभिकंदिय भीसणाऽसमसरो शेसग्गि-निग्गाहगो, अम्हाणं सुमनोरहो फलकरो होजा सुपासो जिणो ॥७॥ निच्चं चंदपहा- पहासुरतणू कपूरपूरोवमं, पत्तो कित्तिमपार-भीसण - भवाकूपारपारंगओ । चंदंको नवचंद निम्मलगुणो चंदप्पहो सो जिणो, भई देउ भवारिसाण भयवं निद्दतधंतोदओ ॥८॥ जो पुप्फुजल- दंतपंति-कलिओ जो चंदकुंदुजलो, जो लोहन्नववाडवाग्गि-सरिसो जो वारिवाहारखो । जो सोवन्नियपंकयं-कियकमो जो मोह-मेहानिलो, अम्हाणं सुविही विहेउ नवमो तित्थंकरो सो सुहं ॥ ९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003304
Book TitleStuti Tarangini Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarsuri
PublisherLabdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan
Publication Year
Total Pages446
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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