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संस्कृत विभाग-२
विस सेणभिहाणपहु
अइरा,
पटराणिय जस बहु तस जाय । एण अंकधरो,
गुणनायगु
मह होउ सुसंति पसंतिकरो ॥१६॥
सिरिसूरय सूरयरायसुउ, बहु बुद्धिविसेसु सजेस जउ । जिणकुंथु जियारिगणो सुमणो, मनासउ लोयमुक्खाय दिणो जिगह ससुदंसणु ते जणउं, तुह देविय देविय अंब अउं, पुण लंछणु नंदयवत्त अहो, अरचंद जिणंद अमंद पहो
गयदंभ पभावइकुंभभवं, ओहिनाण पहायण रायनयं । सरणं करवाणि सुवाणिमुहं, सुहवल्लि - घनं पहु-मल्लिमहं
जगरक्खण लक्खण
भव सुव्वय
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तुह देव सुमित सुमित्तु पिया, जणणी पउमा पउमा - तुलया ।
कुम्मवशे,
सुव्वय सुद्धिकरो ॥२०॥
॥१८॥
॥१९॥
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