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________________ ३५२ कुंदकुंद - विरइओ 56) फासो रसोय गंधो वण्णो सदो य पुग्गला होंति । अक्खाणं ते अक्खा जुगवं ते णेव गेण्डंति ।। ५६ ॥ 57) परदव्त्रं ते अक्खा नेत्र सहावो त्ति अप्पणो भणिदा । उवलद्धं तेहि कथं पच्चक्खं अप्पणो होदि ॥ ५७ ॥ 58) जं परदो विष्णाणं तं तु परोक्खं ति भणिदमट्ठेसु । दि केवलेण णादं वदि हि जीवेण पच्चक्खं ॥ ५८ ॥ 59 ) जादं सयं समत्तं णाणमणंतत्थवित्थडं विमलं । रहियं तु ओग्गहादिहिं सुहं ति एगंतियं भणियं ॥ ५९ ॥ 60 ) जं केवलं ति णाणं तं सोक्खं परिणमं च सो चेव । खेदो तस्स ण भणिदो जम्हा घादी खयं जादा ॥ ६० ॥ 61) णाणं अत्यंतगयं लोयालोएसु वित्थडा दिट्ठी । मणि सव्वं इटुं पुण जं हि तं लद्धं ॥ ६१ ॥ 62) णो सदहंति सोक्खं सुहेसु परमं ति विगदघादीणं । सुणिण ते अभव्त्रा भव्वा वा तं पडिच्छति ॥ ६२ ॥ 63) मणुयासुरामरिंदा अहिहुदा इंदियेहिं सहजेहिं । असता तं दुक्खं रति त्रिसए रम्मे ॥ ६३ ॥ 64) जेर्सि सिसु रदी तेर्सि दुक्खं वियाण सम्भावं । जइ तं ण हि सम्भावं वावारो णत्थि विपयत्थं ॥ ६४ ॥ 65 ) पप्पा इट्ठे विसये फासेहिं समस्सिदे सहावेण । परिणममाणो अप्पा सयमेव सुहं ण हवदि देहो ॥ ६५ ॥ 66) एगंतेण हि देहो सुहं ण देहिस्स कुगदि सग्गे वा । वयवसेण दु सोक्खं दुक्खं वा हवदि सयमादा ॥ ६६ ॥ 67 ) तिमिरहरा जइ दिट्ठी जणस्स दीवेण णत्थि कायव्वं । तह सोक्खं सयमादा विसया किं तत्थ कुव्र्व्वति ॥ ६७ ॥ [1.56 : १-५६ 56) A परसो, CK पासो for फासो, P गिव्हंति 57 ) C सहाओ, A सहाव लि, CK भणिया, CK 59) A वित्थिदं for वित्थडं, AP रहिदं, K कहूं 58) A तत्तु for' तं तु परोक्खो ति [ परोक्खं ति ] x उग्गहादिहि, A सुह प्ति, AP एयंतियं. 60 ) CK घाई, लोगालोगेसु, x वित्थुदा, Ag for हि, K अत्थं for लद्ध. 63) C मया, A अहिदुआ, CK अभिदुदा, AP इंदिएहिं 65 ) A विसए, K पासेहि, ८ भादा for अप्पा 66 ) A कुणइ. भणिओ K घादिक्खयं जादो 61) AP 62) A नहि, P ण for णो, x परम ति. 64) CK रई, P साहावं, c तं णस्थि सहावं. 67 ) AP जदि, A कादव्वं, AP तध. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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