SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०] प्रवचनसारः उत्पादः प्रध्वंसो विद्यते यदि यस्यैकसमये । समयस्य सोऽपि समयः स्वभावसमवस्थितो भवति ॥ ५० ॥ समयो हि समयपदार्थस्य वृत्यंशः, तस्मिन् कस्याप्यवश्यमुत्पादमध्वंसौ संभवतः, परमाणोर्व्यतिपातोत्पद्यमानदेन कारणपूर्वखात् । तौ यदि वृत्त्यंशस्यैव किं योगपधेन किं क्रमेण, यौगपद्येन चेत् नास्ति यौगपद्यं, सममेकस्य विरुद्धधर्मयोरनवतारात् , क्रमेण चेत् नास्ति क्रमः, वृत्त्यंशस्य सूक्ष्मत्वेन विभागाभावात् । ततो वृत्तिमान् कोऽप्यवश्यमनुसतव्यः, स च समयपदार्थ एव । तस्य खल्वेकस्मिन्नपि वृत्त्यं समुत्पादमध्वंसौ संभवतः। यो हि यस्य वृत्तिमतो यस्मिन् वृत्त्यंशे तत्त्यंशविशिष्टत्वेनोत्पादः स एव तस्यैव वृत्तिमतस्तस्मिन्नेव वृत्त्यंशे पूर्वपद्धंसो विज्जदि जदि उत्पादः प्रध्वंसो विद्यते यदि चेत् । कस्य । जस्स यस्य कालाणोः । क एकसमयम्हि एकसमये वर्तमानसमये । समयस्स समयोत्पादकत्वात्समयः कालाणुस्तत्य सो वि समओ सोऽपि कालाणुः सभावसमहविदो हवदि स्वभावसमवस्थितो भवति । पूर्वोक्तमुत्पादप्रध्वंसद्वयं तदाधारभूतं कालाणुद्रव्यरूपं ध्रौव्यमिति त्रयात्मकस्वभावसत्तास्तित्वमिति यावत् । तत्र सम्यगवस्थितः स्वभावः समवस्थितो भवति । तथाहि-यथाङ्गलिद्रव्ये यस्मिन्नेव वर्तमानक्षणे वक्रपरिणामस्योत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैवाङ्गलिद्रष्यस्य पूर्वर्जुपर्यायेण प्रध्वंसस्तदाधारभूताङ्गुलिद्रव्येन ध्रौव्यमिति द्रव्यसिद्धिः । अथवा स्वस्वभावरूपसुखेनोत्पादस्तस्मिन्नेव क्षणे तस्यैवात्मद्रव्यस्य पूर्वानुभूताकुलत्वदुःखरूपेण प्रध्वंसस्तदुभयाभी द्रव्यपनेसे ध्रुव है-[यस्य समयस्य] जिस कालाणुरूप द्रव्यसमयका [एकसमये] एक ही अति सूक्ष्म कालसमयमें [यदि] यदि [उत्पादः] उत्पन्न होना, [प्रध्वंसः] विनाश होना [विद्यते] प्रवर्तता है, तो [सोपि] वह भी [समयः] कालपदार्थ [स्वभावसमवस्थितः] अविनाशी स्वभावमें स्थिररूप [भवति] होता है। भावार्थ-कालपदार्थका समयपर्याय है, उसमें पूर्वपर्यायका नाश और उत्तरपर्यायका उत्पाद अवश्य होता है, क्योंकि पुद्गलपरमाणु पूर्वकालाणुको छोड़कर आगेके कालाणुके समीप मंद गतिसे जाता है, वहाँ समयपर्याय उत्पन्न होता है। इस कारण पूर्वका नाश और आगेकी पर्यायकी उत्पत्ति एक समय होती है। यहाँपर कोई प्रश्न करे, कि कालद्रव्यमें उत्पाद-व्यय होना क्यों कहते हो, समयपर्यायको ही उत्पाद व्यय सहित होना मान लेना चाहिये ? तो इसका समाधान इस तरहसे है, कि-जो समयपर्यायका ही उत्पाद व्यय माना जावे, तो एक समयमें उत्पाद व्यय नहीं बन सकते, क्योंकि उत्पाद-व्यय ये दोनों प्रकाश अंधकारकी तरह आपसमें विरोधी हैं । इस कारण एकपर्याय समयका उत्पाद-व्यय एक कालमें किस तरह हो सकता है ? नहीं हो सकता। यदि ऐसा कहो, “कि एकसमयमें क्रमसे समयपर्यायका उत्पाद व्यय होता है," तो ऐसा भी ठीक नहीं मालूम होता, क्योंकि समय अत्यंत सूक्ष्म है, उसमें क्रमसे भेद हो ही नहीं सकता। इसी लिये एक समयमें समयपर्यायका उत्पाद व्यय नहीं संभव होता है । कालाणुरूप द्रव्यसमयको अंगीकार करनेसे उत्पाद व्यय एक ही समयमें अच्छी तरह सिद्ध होते हैं। इस कारण कालाणुरूप द्रव्यसमय ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003289
Book TitlePravachanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1964
Total Pages612
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy