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________________ (१३) रायपसेणियं [ (२) उवंगसुतं ] [२५] समुप्पज्जित्था किणं खलु अज्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा खंदमहेइ वा रुद्दमहेइ वा मउंदमहेइ वा नागमहेइ वा भूयमहेइ जक्खमहेइ वा थूभमहेइ वा चेइयमहे रुक्खमइया वा गिरिमहेइ दरिमहेइ वा अगडमहेइ वा नईमहेइ वा सरमहेइ वा सागरमहेइ वा जं णं इमे बहवे उग्गा भोगा राइन्ना इक्खागा खत्तिया णाया कोरव्वा जाव इब्भा इब्भपुत्ता हाया कयबलिकम्मा जहोववाइए जाव अप्पेगतिया हयगया जाव अप्पे० गयगया अप्पे० पायचारविहारेणं महया वंदावंदएहिं निग्गच्छंति, एवं संपेहेइ त्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ त्ता एवं व०- किण्णं देवाणुप्पिया ! अज्ज सावत्थीए नगरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे उग्गा भोगा० णिग्गच्छंति?, तए णं से कंचुइपुरिसे के सिस्स कुमारसमणस्स आगमणगहियविणिच्छए चित्तं सारहिं करयलपरिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता एवं व० - णोखलु देवाप्पिया ! अज्ज सावत्थीए णयरीए इंदमहेइ वा जाव सागरमहेइ वा जेणं इमे बहवे जाव विंदाविंदएहिं निग्गच्छंति, एवं खलु भो देवाणुप्पिया ! पासावच्चिज्जे केसीनामं कुमारसमणे जाइसम्पन्ने जाव दूइज्जमाणे इहमागए जाव विहरइ तेणं अज्ज सावत्थीए नयरीए बहवे उग्गा जाव इब्भा इब्भपुत्ता अप्पेगतिया वंदणवत्तियाए जाव महया वंदावंदएहिं णिग्गच्छंति, तए णं से चित्ते सारही कंचुइपुरिसस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठजावहियए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ त्ता एवं व०खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्टवेह जाव सच्छत्तं उवट्ठवेति, तए णं से चित्ते सारही पहाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ त्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगरविंदपरिक्खित्ते सावत्थीनगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ त्ता जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ त्ता केसिकुमारसमणस्स अदूरसामंते तुरए णिगिण्हइ रहं ठवेइ त्ता पच्चोरूहति त्ता जेणेव केसीकुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ त्ता के सिकुमारसमण तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ त्ता वंदइ नमंसइ त्ता णच्चासण्णे णातिदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विणएणं पज्जुवासइ, तए णं से केसीकुमारसमणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेइ, तं० सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं सव्वाओ बहिदादाणाओ वेरमणं, तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया, तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठजावहियए उट्ठाए उट्ठेइ ता केसिं कुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ त्ता वंदइ नमसइ त्ता एवं व० सद्दहामि णं भंते! निग्गंधं पावयणं पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं रो णं भंते ! निग्गंथं पावयणं अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं एवमेयं भंते! निग्गंथं पावयणं तहमेयं भंते !० अवितहमेयं भंते !० असंदिद्धमेयं० सच्चे णं एस अट्ठे जणं तुब्भे वदहत्तिकट्टु वंदइ नमंसइ त्ता एवं व० जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव इब्भा इब्भपुत्ता चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुवण्णं एवं धणं धन्नं बलं वाहणं कोसं कोट्ठागारं पुरं अंतेउरं चिच्चा विउलं धणकणगरयणमणिमोत्तियसंखसिल प्पवालसंतसारसावएज्जं विच्छड्डइत्ता विगोवइत्ता दाणं दाइया परिभाइत्ता मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वयंति णो खलु अहं ता संचाएमि चिच्चा हिरण्णं तं चेव जाव पव्वइत्तए अहण्णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जित्तए, अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि, तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणस्स अंतिए जाव पंचाणुव्वतियं जाव गिहिधम्मं उवसंज्जित्ताणं विहरति, तए णं से चित्ते सारही केसिकुमारसमणं वंदइ नमंसइ त्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए चाउघंटं आसरहं दुरूहइ त्ता जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए ।५४। तए णं से चित्ते सारही समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसवसंवरनिज्जरकिरियाहिगरणबंधमोक्खकुसले असहिज्जे देवासुरणागसुवण्णजक्खरक्खसकिन्नरकिंपुरिसगरूलगंधव्वमहोरगाई हिं देवेगणेहिं निम्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे निग्गंथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए णिव्वितिगिच्छे लद्धट्टे गहियट्ठे पुच्छियट्टे विणिच्छियट्ठे अभिगयट्ठ अट्ठिमिंजपेम्माणुरागत्ते अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमठ्ठे सेसे अणट्ठे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म www.jainelibrar GR96666666666 CELELELELELELELELEL फ्र
SR No.003263
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsagarsuri
PublisherJina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
Publication Year1999
Total Pages46
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_rajprashniya
File Size5 MB
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