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________________ 555555555555555555555OOK IG.G55555555555555 (५) भगवई सत्तं उ-६३ [५४७] 55555555555555. 50 रोगायंकुप्पत्ती] ९२. तएणं तस्स जमालिस्स अणगारस्स तेहिं अरसेहि य विरसेहि य अंतेहि य पतेहि य लूहेहि य तुच्छेहि य कालाइक्कतेहि य पमाणाइक्कतेहि य सीतएहि य पाण -भोयणेहिं अन्नया कयाइ सरीरगंसि विउले रोगातंके पाउब्भूए उज्जले तिउले पगाढे कक्कसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे तिव्वे दुरहियासे, पित्तज्जरपरिगतसरीरे दाहवक्कंतिए यावि विहरइ। सु. ९.३.१,७. उप्पन्नरोगायंकस्स जमालिरस संथारगकरणपण्हत्तरगय - 'कडेमाणकड'विसइया विपरिणामणा ९३. तएणं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे णिग्गंथे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! मम सेज्जासंथारगं संथरेह। ९४. तए णं ते समणा णिग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमद्वं विणएणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता जमालिस्स अणगारस्स सेज्जासंथारगं संथरेति । ९५. तए णं से जमाली अणगारे बलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोच्चं पि समणे निग्गंथे सद्दावेइ, सहावित्ता दोच्चं पि एवं वयासी-ममंण देवाणुप्पिया ! सेज्जासंथारए किं कडे ? कज्जइ ? तए णं ते समणा निग्गंथा जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो खलु देवाणुप्पियाणं सेज्जासंथारए कडे, कज्जति। [सु.५६-९७. 'चलमाण-चलिय' आइभगवंतवयणविरुद्धाए जमालिकयाए परूवणाए केसिचि जमालिसिस्साणमसद्दहणा भगवंतसमीवगमणं च ९६. तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-जं णं समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ जाव एवं परूवेइ- 'एवं खलु चलमाणे चलिए, उदीरिजमाणे उदीरिए जाव निजरिज्जमाणे णिजिणे' तंणं मिच्छा, इमं च णं पच्चक्खमेव दीसइ सेजासंथाराए कजमाणे अकडे, संथरिलमाणे असंथगित, जम्हा सेज्जासंथाराए कज्जमाणे अकडे संथरिजमाणे असंथगिए तम्हा चलमाणे वि अचलिए जाव निजरिज्नमाणे वि अणिज्जिपणे । एवं संपेहेइ, एवं संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेइ, समणे निग्गंथे सद्दावेत्ता एवं वयासी-जंणं देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ जाव परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए तं चेव सव्वं जाव णिज्जरिज्जमाणे अणिज्जिण्णे । ९७. तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमटुं सद्दहति पत्तियंति रोयंति। अत्थेगड्या समणा निग्गंथा एयमद्वं णो सद्दहति णो पत्तियंतिणो रोयंति। तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमद्वं सद्दहति पत्तियंति रोयंति तेणं जमालिं चेव अणगारं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति । तत्थ णं जे ते समणा निगंथा जमालिस्स अणगारस्स एयम8 णो सदहति णो पत्तियंति णो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव चंपानयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करित्ता वंदंति णमंसंति, २ समणं भगवं महावीर उवसंपज्जित्ताणं विहरति । सु. ९८. चंपाए भगवंतसमीवागयस्स जमालिस्स अप्पाणमुद्दिस्स केवलित्तपरूवणं] ९८. तर णं से जमाली अणगारे अन्नया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हवे जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था भवेत्ता छउमत्थावक्कमणेणं अवता, णो खलु अहं तहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावक्कमणेणं अवतते, अहं णं उप्पन्नणाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलि अवक्रमणेणं अवक्वंते। सु.९९-१०२. गोयमकयपण्हनिरुत्तरस्स भगवंतकयसमाहाणमसद्दहंतस्स य जमालिस्स मरणं लंतयदेवकिब्बिसिएसु उववाओ य] ९९. तए णं भगवं गोयमे जमालिं अणगारं एवं वयासि-णो खलु जमाली ! केवलिस्स णाणे वा दसणे वा सेलसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवरिज्जइ वा णिवारिज वा । जइ णं तुम जमाली ! उप्पन्नणाण-दसणधरे अरहा जिणे केवली है भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्वंते तो णं इमाई दो वागरणाई वागरेहि, ‘सासए लोए जमाली ! असासए लोए जमाली ! ? सासए जीवे जमाली ! असासए जीवे जमाली! ?' १००. तए णं से जमाली अणगारे भगवया गोयमेणं एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए जाव कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था, णो संचाएति भगवओ २ गोयमस्स किंचि वि पमोक्खमाइक्खित्तए, तुसिणीए संचिट्टइ। १०१. 'जमाली'ति समणे भगवं महावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अत्थि णं जमाली ! ममं बहवे Presro F5555555555FFFFFFFFFF55 श्री आगमगुणमंजूषा- ३६२ 055555555555555555555555#FOTOR 195555555555555555555555555555555555555555555555SODNOR HOR9555555555555
SR No.003255
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Shwetambar Agam Guna Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunsagarsuri
PublisherJina Goyam Guna Sarvoday Trust Mumbai
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size35 MB
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