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(५) भगवई ८ गतं उ-६ (१११]
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जाव परिट्ठावेयव्वे सिया। [सु. ७. पिंडयायपतिण्णाए गाहावइकुलमणुपविट्ठस्स अण्णयरअकिच्चट्ठाणसेविस्स आलोयणादिपरिणामस्स निग्गंथस्स आराहगत्तं] ७. (१) निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पवितुणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि पडिकमामि निंदामि गरिहामि विउहामि विसोहेमि अकरणयाए अब्भुट्टेमि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि । से य संपट्ठिए, असंपत्ते, थेरा य अमुहा सिया, से णं भंते ! किं आराहए विराहए ?, गोयमा ! आराहए, नो विराहए। (२) से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुव्वामेव अमुहे सिया, सेणं भंते! किं आराहए, विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। (३) से य संपट्ठिए, असंपत्ते थेरा य कालं करेज्जा, सेणं भंते ! किं आराहए विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। (४) से य संपट्ठिए असंपत्ते अप्पणा य पुव्वामेव कालं करेज्जा, सेणं भंते ! किं आराहए विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए। (५) से य संपट्ठिए संपत्ते, थेरा य अमुहा सिया, सेणं भंते ! किं आराहए विराहए ? गोयमा ! आराहए, नो विराहए।' (६)-८ से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य० । एवं संपत्तेण वि चत्तारि आलावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं। [सु.८-९. वियार-विहारभूमिणिक्खंतस्स गामाणुगामं दूइज्जमाणस्स य अन्नयरअकिच्चठाणसेविस्स आलोयणादिपरिणामस्स निग्गंथस्स आराहगत्तं] ८. निग्गंथेणं य बहिया वियारभूमि वा विहारभूमिं वा निक्खेतेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति इहेव ताव अहं० । एवं एत्थ वि, ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए । ९. निग्गंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, तस्स णं एवं भवति इहेव ताव अहं० । एत्थ वि ते चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए। [सु. १०. सत्तम-अट्ठम-नवमसुत्तवण्णितविसए निग्गंथीए आराहगतं] १०. (१) निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठाए अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे
पडिसेविए, तीसे णं एवं भवइ -इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्म पडिवज्जामि तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जाव म पडिवज्जिस्सामि, सा य संपट्ठिया असंपत्ता, पवत्तिणी य अमुहा सिया, सा णं भंते ! किं आराहिया, विराहिया ? गोयमा ! आराहिया, नो विराहिया। (२) साय
संपट्ठिया जहा निग्गंथस्स तिण्णि गमा भणिया एवं निग्गंथीए वि तिण्णि आलावगाभाणियव्वा जाव आराहिया, नो विराहिया। [सु.११. सत्तमाइदसमसुत्तपज्जंतपरूविय 'आराहगत' समत्थणे उण्णलोमाइ -अहयवत्थाइदिह्रतजुगं] ११. (१) से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-आराह,, नो विराहए ? "गोयमा ! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं उण्णलोभं वा गयलोभं वा सणलोभं वा कपपासलोमं वा तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेज्जहा वा छिदित्ता अगणिकायंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! छिज्जमाणे छिन्ने, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, डज्झमाणे दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया ? हंता, भगवं ! छिज्जमाणे छिन्ने जाव दड्ढे त्ति वत्तव्वं सिया। “२ से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा धोतं वा तंतुम्गयं वा मंजिट्ठादोणीए पक्खिवेज्जा, सेनूणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, रज्जमाणे रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया? हंता, भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्ते त्तिवत्तव्वं सिया । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-आराहए, नो विराहए"। [सु. १२-१३. झियायमाणे पदीवे अगारे य जोइजलणपडिवादणं] १२, पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पदीवे झियाति, लट्ठी झियाइ, वत्ती झियाइ, तेल्ले झियाइ, दीवचंपए झियाइ, जोती झियाइ ? गोयमा ! नो पदीवे झियाइ, जाव नो दीवचंपए झियाइ, जोती झियाइ । १३. अगारस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं अगारे झियाइ, कुड्डा झियायंति, कडणा झियायंति, धारणा झियायंति, बलहरणे झियाइ, वंसा झियायंति, मल्ला झियायंति, वग्गा झियायंति, छित्तरा झियायंति, छाणे झियाति, जोती झियाति ? गोयमा ! नो अगारे झियाति, नो कुड्डा झियाति, जाव नो छाणे झियाति, जोती झियाति। [सु. १४-२९. जीव -चउवीसदंडएसु एगत्त-पहुत्तेणं एग -बहुओरालियाइपंचसरीरेहि
किरियापरूवणा] १४. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए। १५. नेरइए प्र णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। १६. असुरकुमारे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? ' श एवं चेव । १७. एवं जाव वेमाणि,, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु. १४)। १८. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए जाव सिय ror
श्री आगमगुणमंजूषा-
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