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"छद्र अहवा दवालसग पायच्छित हवेज्जा ! से भयवं! समाणोवासगस्स पोससालाए पोसहिये पोसह बभयारी कि जिणधरे गच्छेज्जा? हँता गोयमा! गच्छेज्जा । से भयव के ग?णं गच्छेज्जा ? गायमा-नाणं दंसणं चरणट्टाए गच्छेज्जा। जे केइ पोसहसालाए पोसह बंभयारी तमो जिणधरे न गच्छेज्जा तो पायच्छित्तं हवेज्जा ? गोयमा ! जहा साहू तहा भणियन्वं छ? अहवा दवालसगं पायच्छित्त हवेज्जा।
___ अर्थ-हे भगवन् ! यथारूप श्रमण अथवा माहण-तपस्वी चैत्य घर अर्थात् जिनमंदिर जावे? भगवन्त कहते हैं कि हे गौतम! प्रति दिन जावे । गौतम-हे भगवन! 'जिस दिन न जावे उस दिन क्या प्रायश्चित हो ? प्रम-हे गौतम ! प्रमाद के वश से यथारूप साधु अथवा तपस्वी जो जिनमंदिर न जावे तो छठ (बेले) का अथवा दुवालस पांच उपवास) का प्रायश्चित हो । गौतम-हे भगवन ! श्रावक पौषधशाला में पौषध में रहा हुआ पौषध ब्रह्मचारी जिनमदिर में जावे ? प्रम-हां जावे । गौतम-क्यों जावे ? प्रमु-हे गौतम ! ज्ञान, दर्शन, चरित्र के अर्थ जावे ! गोतम-हे भगवन ! जो कोई पौषध“शाला में रहा हुआ पौषध ब्रह्मचारी श्रावक जिनमन्दिर न जावे तो क्या प्रायश्चित हो ? प्रमु-हे गौतम ! जैसे साधु-तपस्वी को प्रायश्चित हो वैसे श्रावक पौषध ब्रह्मचारी को भी जानना।
उपयुक्त विवरण से स्पष्ट है कि जैनागमों में जिन प्रतिमाओं, जैन मंदिरों की मान्यता, एवं तीर्थों-स्तू गें, गुफाओं की स्थापनाएँ तथा उनमें तीर्थकर भगवन्तों की प्रतिमाओं को वन्दन, सस्कार, उपासना, पूजादि के संदर्भो की कमी नहीं है । 1-अविरति सम्यग् दृष्टि इन्द्र, नरेन्द्र, चक्रवर्ती, राजे-महाराजे, देव, दानव, देवियाँ, 2-देशविरति द्रोपदी आदि श्राविकायें, आनन्द, अम्बड़ जैसे श्रावक 3-सर्वविरति पांच महाव्रतधारी चारण मुनि अन्य साधु-साध्वी आदि सब ने जिनप्रतिभाओं की वादना, उपासना, सत्कार प्रतिष्ठाए तथा पूजा की हैं ।
__ जिन प्रतिमा पूजन से लाभ1. एवं कुणमाणाण, एया दुरियक्खओ इह जम्मे परलोगम्मि य गौरव-भोगा परमं च निव्वाणं ॥16॥
(हरिभद्रीय पूजाविधि विशिका) अर्थ- इस प्रकार श्री तीर्थकर भगवन्तों की पूजा के इस जन्म में पापों का क्षय करती है (और पुण्यानुबंधो पुण्य उपार्जन करती है जिसके उदय से) इस भव और पर भव में गौरव और भोगों की प्राप्ति होती है। और अन्त में (सर्व कर्म क्षय रूप) परम निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त होता है ।
2. तम्हा जिणाण पूया, बुहेण सव्वायरेण कायया।
परमं तरंडमेसा, जम्हा संसार-जलहिम्भि ।।19।। अर्थ-इसलिये विचक्षण बुद्धिमान विद्वान को मन-वचन-काया की उत्कृष्ट
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