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11. चेइम दव्व-(चैत्य द्रव्य) देवद्रव्य, जिनमन्दिर सम्बन्धी चल-अचला सम्पत्ति (वव० 9 पंचमा उप० 40, द्र० 4)
12. चेइन परिवाडी - (चैत्य परिपाटी) क्रमसे जिनमन्दिरों की यात्रा (धर्म० 2)। ___ 13. चेइअ मह -मन्दिर सम्बन्धी उत्सव (आचार० 2, 1, 2)
14. चेइअ रुक्ख - (चैत्य वृक्ष) जिनेश्वरदेव को जिस वृक्ष के नीचे केवल-- ज्ञान होता है, ऐसा वृक्ष (समवायांग)।
15. चेइअ वंदण -(चैत्यवन्दन) जिनेश्वरदेव की प्रतिमा की मन-वचन-काया से स्तुति की एकाग्रता (पर्व 1, संघ 1; 3)। चैत्य शब्द का प्रयोग-दिगभ्वर प्राम्नाय द्वारा (जिनेन्द्रदेव पूजा विधान में)
16. अत्रिम चैत्य-निलय-शाश्वत जिनेन्द्रदेव का मंदिर यथाकृत्यं-अकृत्यं चारू चंत्यनिलयो नित्यं त्रिलोकी-गतान् वन्दे ।
अर्थात्-तीनलोक में विद्यमान जिनेन्द्रदेव के सुन्दर मन्दिरों की वन्दना करता हूँ।
17. चैत्यायान-जिनेन्द्रदेव का मन्दिर । यथा--- चैत्यायतनानि सर्वानि वन्दे जिन पुंगवानां । अर्थात्-जैनमन्दिरों में विद्यमान सब जिनेन्द्रदेवों की प्रतिमाओं को वन्दना करता हूँ। 18. चेइय भत्ति-जिनेन्द्रदेव की मूर्ति की भक्ति । यथाइच्छामि मंते चेइयभत्ति काओसग्गो कओ। अर्थात्-हे भगवन ! मैं जिनेन्द्रदेव की मूर्ति की भक्ति के लिए कायोत्सर्ग करता हूँ। 19. जिन-चेइय-जिनेन्द्रदेव को प्रतिमा । यथा
किट्टिम-अकिट्टिमाणं जाणि जिणचेइयाणि ताणि सर्वाणि अहमवि इह सतो तत्य मंताई णिच्चकालं अच्चेमि पुज्जेमि वंदामि णमंसामि ।
अर्थात् जीनलोक में जहाँ कहीं भी कृत्रिम (निमित) अकृत्रिम (शाश्वत) जिनेन्द्रदेव की प्रतिमाएं विद्यमान हैं । मैं भी यहाँ रहता हुआ उन सब की सदा सर्वदा अर्चना करता हूँ, पूजा करता हूँ, वन्दन करता हूँ, नमस्कार करता हूँ।
(अकृत्रिम शाश्वत चैत्यनिलय अर्घ्यपूजा विधान)
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन श्वेतांबर-दिगम्बर शास्त्रो में चैत्य शब्द का प्रयोग जिन प्रतिमा, जिनमन्दिर, अथवा सिद्धायतन के लिये हुआ है
और यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि जिस बाग, उद्यान, वृक्ष, आदि का नाम (चत्य' शब्द के साथ आया है वह भी किसी देव के निनित्त से ही आया है।
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