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श्री वल्लभ स्मारक - जिनधर्म प्रसार का मेरुदंड
किसी भी धर्म का मर्म अथवा सम्प्रदाय की शक्ति का अनुमान करना हो तो उसका साहित्य, कीर्तिचिन्ह एवं धर्मस्थानों का अध्ययन तथा अवलोकन करना परम आवश्यक है । पुरातन धर्म-ग्रंथ, साहित्य, कलात्मक तथा भव्य निर्माण कार्य एवं देवालय इसके परिचायक हैं। श्री वल्लभ स्मारक का निर्माण जैन धर्मावलम्बी गुरु भक्तों का इस शताब्दी का सबसे बड़ा एक अनूठा प्रयास है ।
भारत सकल विश्व के लिए आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत माना जाता है । विश्व को आत्म कल्याण, सह-अस्तित्व एवं शान्ति का पाठ भारत ने ही दिया है । वस्तुतः आज का मानव इन्हीं की खोज में भटक रहा है। जैन धर्म का इसमें विशेष योगदान है । इसने सत्य, अहिंसा, अनेकान्तवाद एवं अपरिग्रह के सिद्धांत देकर भारतीय संस्कृति को उज्ज्वल एवं उत्कृष्ट बनाया है। 24 वें तीर्थंकर भगवान वर्धमान महावीर की यही देशना है । इन्हीं अमूल्य सिद्धांतों का हमने इस जगत में प्रचार एवं प्रसार करना है ।
स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद संसार में भारत की राजनैतिक प्रतिष्ठा एवं महत्व दिन-प्रति-दिन बढ़ रहा है । संतप्त एवं भटका हुआ प्राणी भारतीय संस्कृति का अध्ययन कर सच्चा आध्यात्मिक सुख और शांति प्राप्त करना चा:ता है । लगभग 75 विदेशी दूतावासों ने दिल्ली में अपने सांस्कृतिक विभाग खोलें हुए हैं। इसमें अधिकाँश वे राष्ट्र हैं जो आज विकसित, समृद्ध और शक्तिशाली हैं। वे सभी भारत की खोज करना चाहते हैं । खोज किस चीज की ? भारत के विकासशील उद्योग, नदियाँ, डॅम तथा तापघर उनके लिए विशेष महत्व नहीं रखते । वे तो खोज करना चाहते हैं केवल यहाँ के साहित्य और संस्कृति की । इसके लिए उपयोगी हैं हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारा साहित्य, हमारा इतिहास, हमारी निर्माण कला, हमारे प्राचीन मंदिर एवं कीर्ति चिन्ह | अतः हमारा कर्तव्य है कि हम गवेषकों के लिए उपयोगी प्राचीन
सामग्री की सुव्यवस्था तथा युगानुरूप नव-निर्माण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहें ।
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