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(आजु-बाजु) की भूमि को जयणा पूर्वक झाड़ प छ लेना चाहिए फिर शुद्ध जल से शिला और चन्दन की लकड़ी को धोकर उस शिला पर (2) जल के साथ केसर, बरास (कप र) अम्बर आदि रखकर चन्दन की लकड़ी से घिसकर एक रस बना लेना चाहिए। इस मिश्रित गाढ़े रस को एक कटोरी में भरकर प्रभु की अंगप जा के लिए रख ले। दूसरी कटोरी में अपने मस्तक पर तिलक करने के लिए रख लें। (3) सुगंधित-ताजे अखण्डित फूलों को भलीभांति देखना चाहिए। यदि उन पर कोई सूक्ष्म या स्थूल जीव जन्तु चढ़ा हो तो उसे भी यत्न पूर्वक दूर हटा देना चाहिए और उन फूलों पर पानी का छींटा देकर बिना दबाये और मसले धोकर कपड़े में डालकर सुखा लेना चाहिए। (4) सुगंधित धुप, (5) घी का दीपक, (6) पवित्र-शुद्ध-अखण्डित, जीव रहित अक्षत (चावल), (7) ताजा नैवेद्य (मिष्ठान मिठाई आदि) (8) उत्तम जाति के फल, (9) आरती, मंगलदीवा आदि सब पजा की सामग्री तैयार करके रख लें।
फिर अपने मस्तक पर तिलक करें (जैन दर्शन में श्रावक श्राविका को अपने ललाट पर बादाम के अथवा मंदिर के शिखर के आकार का तिलक करने का विधान है तिलक करने का प्रयोजन श्री जिनेन्द्र प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य करने का है।
फिर प्रभ की दाहिनी तथा अपनी बाईं तरफ़ से तीन फेरियाँ (प्रदक्षिणा) देते हुए भावना करनी चाहिए कि मुझे सभ्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्ररूप रत्नत्रय की प्राप्ति हो जिस से निर्वाण की प्राप्ति होकर संसार में आवागमन समाप्त हो जावे ।
जिन पूजन विधि फिर जिस जगह भगवान विराजमान हों वहां बीच के द्वार पर मूलगंभारे के पास पहुंच कर दूसरी बार 'निसीहि' कहनी चाहिए। इस निसीहि के बाद मंदिर के काम काज तथा पूजा की सामग्री आदि तैयार करने के कार्यो का भी त्याग हो जाता है और मात्र पूजा करने की छूट रहती हैं । निसिहि के बाद थोड़ा झुककर और दोनों हाथ जोड़ कर 'जगत बयाधार तुम्यं नमः' बोलना चाहिए अर्थात्-हे तीन जगत के आधार प्रभुजी ! मापको नमस्कार हो । अथवा अन्य कोई स्तुति भी बोल सकते हैं।
___अब अपने मुख और नाक पर कपड़े की आठ तह करके मुखकोष बांधे। फिर मूलगंभारे में पंचामृत जल के कलश, चंदन, केसर, बरास मिश्रण सुगंधि, कटोरी में तथा ताजे सुगंधित पुष्प तशतरी आदि में लेकर पूजा करने के लिए मूलगंभारे में प्रवेश करना चाहिए । वहां जिनप्रतिमा के ऊपर से अलंकार, आंगी, निर्माल्य फूलादि उतारने चाहिए। उतरे हुए फूल आदि को ऐसी जगह डालना चाहिए जहां किसी के
2. पूजा करते समय मुखकोश से नाक और मुख के ढांकने का यह प्रयोजन, है कि हमारे नाक से और छींक आदि से निकलने वाला श्वासोश्वास और श्लेष्म आदि न गिरने पावे और मुख से निकलने वाली सूक्ष्म थक तथा वायु आदि प्रतिमा पर न गिरे डकार, खांसी, उबासी, शब्दादि से उड़ने वाले थूक श्लेष्म न गिरने पावें ।
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