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तथा सामायिक आदि के समय नहीं पहनने चाहियें ।
3. मनशुद्धि (भावशुद्धि)
मन में किसी पर राग-द्वेष, आक्रोश, क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, स्पर्धा इसलोक-परलोक की यशकीर्ति आदि की बांछा, कौतुक, क्रीड़ा, चपलता, चिंता, प्रमाद, देखा-देखी, संकल्प - विकल्प इत्यादि भावनाओं को त्यागकर चित्त की एकाग्रता तथा निर्मलता से प्रभु की जो भक्ति की जाती है उसे भावशुद्धि-मनशुद्धि कहते हैं । अर्थात् सांसारिक, लौकिक वासनाओं से मन को सर्वथा हटाकर एकाग्र मन से अपने आपको प्रभु को समर्पित करके पूजा करनी चाहिए। उस समय प्रभुभक्ति तथा प्रभु के गुणों के चितन - स्मरण एवं प्राप्ति के लक्ष्य के सिवाय और किसी भी प्रकार के विचार मन में* नहीं होने चाहियें । आत्तं रौद्र ध्यान का एक दम अभाव तथा धर्म-शुक्ल ध्यान का सद् भाव होना चाहिए ।
4. वचन शुद्धि
श्री मंदिर जी में पूजा के समय वचन की विशेष शुद्धि रखने की आवश्यकता है । स्त्री पुरुषों की संसार विषयक कथाएं, राजकथा, भोजन कथा, देश विदेशों की कथा आदि सब प्रकार की विकथाओं का सर्वथा त्याग होना चाहिए, किसी की निन्दा चुग़ली नहीं करनी चाहिए। क्रोध, मान, माया, लोभ, द्वेषादि जिससे उत्पन्न हों ऐसे वचनों को न बोलना चाहिए । अर्थात् श्री मंदिर जी की व्यवस्था तथा पूजादि संबंधी वचनों के सिवाय सब प्रकार की बातों का त्याग करना चाहिए । अशुभ तथा अशुद्ध वचनों का त्याग एवं प्रभु पूजा के लिए पूजा आदि के पाठों का सुन्दर, शुद्ध, शान्त और धीमे स्वर में उच्चारण होना चाहिए । बिना प्रयोजन बोलने की रोकथाम के लिए मौन रहना परमावश्यक है। दर्शन-पूजा आदि के पाठों को ऊंचे स्वर जोर से बोलने से वातावरण अशान्त हो जाता है । पूजा के लिए वातावरण एकदम शान्त चाहिए । पूजा करने वाले महानुभावों को चित्तवृत्ति की स्थिरता एकाग्रता प्राप्त करने में एकदम. शान्त वातावरण ही सहायक हो सकता है अपरंच श्री मंदिर जी की व्यवस्था सम्बन्धी वचन में भी शान्त और मीठे शब्दों का प्रयोग करना ।
5. भूमि शुद्धि
श्री जिनमंदिर के अन्दर बाहर एवं इर्द-गिर्द ( आसपास) की ज़मीन स्वच्छ होनी चाहिए । श्री मंदिर जी में जाला, कूड़ा-कचरा अथवा अन्य भी किसी प्रकार की अपवित्रता नहीं होनी चाहिए। मंदिर के आस-पास की भूमि पर मल, मूत्र, थूक, श्लेष्म, गोबर, कूड़ा-कचरा आदि नहीं होने चाहियें। पशुओं आदि को बांधना भी नहीं चाहिए । क्योंकि भावशुद्धि केलिए शान्त और पवित्र वातावरण की आवश्यकता है। ऐसे वातावरण के लिए पवित्र, साफ सुथरी तथा शुद्ध वायुमंडल वाली भूमि भी एक मुख्य साधन है । पवित्रता न रखने से भारी आशातना होती है ।
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