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________________ 146 प्रतिमा आदि की उपयोगिता भूति मान्यता के विरोधियों का कहना है कि (1) जैसे मृत पति की प्रतिमा, चित्र, फ़ोटो, मूर्ति आदि की उपासना, भक्ति, जप, नामस्मरण आदि करने से पतिव्रता स्त्री की काम-भोग की तृप्ति, पुत्रादि की प्राप्ति की कामना पूरी नहीं हो सकती। (2) जैसे पत्थर की गाय-भैंस-बकरी अथवा इनके चित्र से दूधादि की प्राप्ति नहीं हो सकती। (3) जैसे पत्थर आदि के सिंह में जीवित सिंह के सामर्थ्य का अभाव है। वैसे ही तीर्थकर की मूर्ति, चित्र, फ़ोटो आदि की उपासनादि से आत्म-कल्याण सम्भव नहीं है । अतः जड़ को चेतन के समान समझना सरासर भूल है, अपने आपको धोखा देना है। जड़ मूर्ति में चेतनमय असल वस्तु की क्षमता कहां सम्भव है ? इसलिये हम तो निराकार ईश्वर को मानते हैं और उसके गुण भी निराकार हैं। मूर्ति द्वारा उसके स्वरूप को जानना और उसकी उपासना, साधना, आराधना, सब असम्भव है । ईश्वर के गुणों की ही उपासना करनी चाहिये । इसी से ही आत्मा का कल्याण सम्भव है। समाधान (1) जिस स्त्री का भरतार मर गया है अथवा परदेश गया हुआ है यदि वह स्त्री आसन बिछा कर अपने पति का नाम लेवे अथवा माला लेकर जाप करे तो क्या इसे उसकी काम-भोग-लालसा, अथवा पुत्रादि की प्राप्ति की इच्छा पूरी हो जावेगी ? कदापि नहीं। तब तो तीर्थंकरों के नाम का जाप भी नहीं करना चाहिए? क्योंकि आपकी धारणा के अनुसार जो वस्तु विद्यमान है उसका नाम स्मरण, जापादि करने से भी कोई लाभ संभव नहीं है । परन्तु आप तो तीर्थंकरों के नाम की माला भी फेरते हैं, वह भी उससे लाभ की इच्छा से ही करते हैं। जहां वासना होती है, कुछ पाने की इच्छा होती है, काम-भोग पुत्रादि पाने की कामना होती हैं। ऐसी उपासना से किसी प्रकार का आत्मकल्याण सम्भव नहीं। इस प्रकार की उपासना यदि तीर्थकर के नाम जापादि से भी की जावे तो आत्मा के भवभ्रमण का ही कारण है । फिर वह चाहे उनकी जड़ मूर्ति की हो अथवा जीवित तीर्थंकर की क्यों न हो। भक्त जो कुछ भी साधना, उपासना करता है वह आत्मकल्याण की भावना से श्रद्धापूर्वक उनके प्रति पूज्यभाव का परिचय देता है। पतिव्रता स्त्री अपने मतपति के चित्र, फ़ोटो अथवा मूर्ति को नमस्कार कर अपनी भक्ति और श्रद्धा का परिचय देती है। उस समय काम वासना भोग वांछा अथवा पुत्र प्राप्ति की भावना का लेशमात्र भी अवकाश नहीं है। क्योंकि वह जानती है कि मृत भरतार से पुत्रादि की प्राप्ति असम्भव है। मतपति के दर्शन, स्मरण, नाम जपने से यह भावना तो वह पतिव्रता स्त्री अवश्य कर सकती है कि उसे पति के अभाव में एकनिष्ठ, ब्रह्मचर्य (शील) पालन करने का सामर्थ्य प्राप्त हो । जिससे वह शुद्ध-पवित्र जीवनयापन करके अपने आपको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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