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परन्तु जिनप्रतिमा पूजन में न तो प्रभु को कुछ लेने की तमन्ना है और न ही साधक को उसके बदले में भोगोपभोग की सामग्री पाने की भावना । अतः तिर्थंकर प्रभु की भक्ति से घटिया दर्जे की साधु भक्ति में यदि आप धर्म मानते हैं तो जिनेश्वर प्रभु की भक्ति में दोष की भावना क्यों?
(3) जैनागमों में स्पष्ट वर्णन है कि तीर्थंकर का जन्म महोत्सव करने के लिए जब इन्द्रादि देवता आते हैं तब वे तीर्थंकर को वन्दन, पूजन, भक्ति धर्मादि की भावना से आते हैं उस समय उस बालक में अरिहंत अवस्था विद्यमान न होने से भविष्य में होने वाली अरिहंत अवस्था को लक्ष्य में रखते हुए वर्तमान अवस्था में मान कर वन्दना आदि करते हैं। तो वह द्रव्य निक्षेप की पूजा हुई। इस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखने की आवश्यकता है इन्द्र सम्यग्दृष्टि होते हैं और इन सम्यग्दृष्टियों ने तीर्थंकर के पांचों कल्याणकों के अवसर पर यथायोग्य वन्दन पूजन महोत्सव आदि किये हैं।
___ इसी प्रकार सम्यग्दृष्टि साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका भी साक्षात् तीर्थंकर प्रभु के समान जिनप्रतिमा को भी पूजा-भक्ति, उपासना से आत्मकल्याण करते हैं ।
प्रश्न-तीर्थकर प्रभु तो सर्वथा त्यागी हैं उनकी पूजा में द्रव्यों का उपयोग करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसा करने से वे त्यागी नहीं रहते । मदिरों, तीर्थों आदि की यात्रा करने केलिये जाने आने से हिंसा तो होती है इसलिए ऐसे कृत्य में धर्म क्यों ?
समाधान-1. तीर्थंकर भगवन्त त्यागी हैं अवश्य । पूजा में जो द्रव्य काम में लिए जाते हैं उनसे तीर्थकर को कुछ लेनादेना नहीं और न ही उन को चढ़ाने से तीर्थंकर भोगी ही बन जाते हैं । साधक अपने आत्मकल्याण केलिए सब सामग्री को काम में लाता है और साधक भी द्रव्यों को अर्पण और त्याग की भावना से चढ़ाता
___2. तीर्थंकर प्रभु जब दीक्षा लेने जाते है तब चक्रवर्ती, राजा, महाराजा के वेश में जाते हैं। उस वेश में भी वे सर्वथा त्यागी' ही हैं। क्योंकि उस समय वस्त्रालंकारों पर तो क्या उन्हें अपने शरीर पर भी ममत्व नहीं होता।
3. इस बात को विशेष रूप से स्पष्ट करने के लिये जरा किसी वैरागी को दीक्षा लेने से पहले उसके वरघोड़े (जलस) पर दृष्टिपात करें । उसका वरघोड़ा कितनी सज-धज और ठाठ-बाट के साथ निकाला जाता है । उस वैरागी अथवा वैरागन को बढ़िया से बढ़िमा कपड़े जेवर पहनाये जाते हैं । यदि उनके परिवार वालों के पास बढ़िया वस्त्राभूषण न हों तो मांग कर भी पहनाये जाते हैं । हाथी, कार आदि को खूब सजाकर उस पर बिठाया जाता है, उसका जलूस राजे, महाराजा की शानोशौकत से कम नहीं होता । ऐसी अवस्था में उस दीक्षार्थी वैरागी को भोगी कहोगे या त्यागी ? यदि भोगी कहोगे तो वह दीक्षा के अयोग्य है क्योंकि उसे अभी तक त्याग की तरफ़ लक्ष्य
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