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12 नवग्रहानुसार विवेचन-मंगल क्योंकि उच्च का तया मकर राशि का है इस लिए जातक ख्याति-प्राप्त पराक्रमी, नेता, ऐश्वर्यशाली, एव महत्त्वकाँक्षी होता है । साथ ही राजसी चिह्नों यथा प्रलम्ब बाहु, सुदढ़ स्कन्धद्वय, विशाल वृक्षस्थल, उन्नत ललाट तथा कान्तिवान मुखमण्डल से युक्त होता है ।
सूर्य क्योंकि उच्च तथा मेष राशि का है । अत: जातक आत्मबली, स्वाभिमानी महत्त्वाकांक्षी तथा गम्भीर एवं उदार वृत्ति का होता है।
वृहस्पति क्योंकि उच्च का तथा कर्क राशि का है इसलिए ऐसा जातक सदाचारी, विद्वान्, सत्यवक्ता, महायशस्वी, समद्रष्टा, सुधारक, योगी, लोकमान्य तथा नेतृत्व करने वाला होता है। मुखमण्डल आभायुक्त, तेजोमय एवं प्रभावोत्पादक होता
शुक्र क्योंकि स्वगृही व पंचम भाव में है और वृष राशि का है अत: जातक सुन्दर, ऐश्वर्यशाली, दानी तथा सात्विक वृत्ति का होता है। साथ ही परोपकारी, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, त्यागभावना वाला तथा प्रेम-संगीत और भाग्यवान होता है। यह जातक स्वतन्त्र प्रकृति का विचारक होता है।
शनि क्योंकि उच्च क्षेत्री का होकर दशम ग्रह में बैठा है अतः यह जातक सुभाषी, नेतृत्व प्रदान कर सकने में समर्थ, उन्नतिशील तथा यशस्वी होता है। ऐसा जातक राज-परिवार का सदस्य होता है ।
राहु क्योंकि कर्क राशि का है अतः यह जातक उदार एवं इन्द्रियनिग्रही होता है। दाम्पत्य जीवन को अल्पकाल तक भोगता है।
केतु क्योंकि मकर राशि का है इसलिये यह जातक प्रवासी, परिश्रमी, पराक्रमी, तेजस्वी तथा मोक्षमार्गी होता है।
बुध मेष राशि का है फलतः ऐसा जातक इकहरे लेकिन सुगठित अंगों वाला और सत्यवक्ता होता है तथा समृद्ध, सम्पन्न एव ऐश्वर्यशाली होता है ।
चन्द्रमा कन्या राशि का होकर नवम स्थान में बैठा है । अतः यह जातक अल्प सन्तति वाला, दानी स्वभाव का, गम्भीर प्रकृति का तथा सुदृड़ देहयष्टि वाला धार्मिक वृत्ति का होता हैं।
अब द्वादश ग्रहों पर विचार करेगे : प्रथम गृह-मकर लग्न में जन्म होने के कारण इसमें मंगल और केतु (जो शारीरिक रचना के रूप-लावण्य से सम्बद्ध है) है इस कारण इस जातक का रंग गेहुँआ होना चाहिए । केतु के प्रभाव से लम्बी और सुन्दर ग्रीवा वाला होना चाहिए । इसके साथ बड़ी-बड़ी प्रावोत्पादक आँखे भी होनी चाहिए।
मंगल के कारण गर्भ-काल में किसी गड़बड़ी (गर्भ परार्वतन) की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। मंगल और केतु की युक्ति के फलस्वरूप वह परोपकारी, मोक्षमार्ग-प्रदर्शक होता है। मंगल उच्च राशि का है इसलिए जातक रजोगुणनाशक तथा भ्रमणशील एवं ख्यातिप्राप्त नेता होता है। केतु के प्रभाव से विश्व-वन्द्य, परम पूज्य, बुद्धि व भाग्य की खान होता है । जिसके दर्शनार्थ लोग चलकर आये ऐसा नामवर और बुलन्द-मर्तबा होता है । जती-सती एकान्त-प्रिय होता है।
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