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________________ 93 करते हैं। इन दोनों पंथों के पूजा के पाठों में समानता होते हुए भी इन के आपस के विधि-विधानों और मान्यताओं में कितना अन्तर हो गया है, हमारे विचार से तो यह सब नासमझी और पक्षाग्रह के कारण से ही हो रहा है । अतः हम यहां पर इन की पूजापद्धति पर अति संक्षिप्त प्रकाश डालेंगे। दिगम्बर नरेन्द्र मेन भट्टाचार्य कृत प्रतिष्ठा पाठ, प्रभाकरलेन कृत प्रतिष्ठा पाठ; आशाधर कृत प्रतिष्ठा पाठ; योगेन्द्र देव कृत श्रावकाचार; भगवत् देव संधिकृत जिनसंहितादि में नाना प्रकार के पूजा विधानों का वर्णन है। ____1-पुष्पमाला से पूजा --जिनसेनाचार्य कृत आदिपुराण में लिखा है कि . उत्तम कुल के श्रावक केलिए (जिनदेव के गले में पहनी हुई) जिनपदस्पर्शित पुष्पमाला अपने सिर पर धारण करने योग्य हैं। 2-पुष्पमाला से पूजा-अजितनाथ पुराण में लिखा है कि श्री अजितनाथ तीर्थंकर की माता जयसेना ने बाल्यावस्था में अष्टाहिका महोत्सव करके श्री अर्हन् के शरीर को विलेपन किया और पुष्पमाला पहनायी। फिर जिनप्रतिमा के चरण. स्पर्शित करती हुई इस पुष्पमाला को लेकर अपने पिता को दी, पिता ने लेकर पत्री को देकर उसे विदा किया । 3-मारती पूजा-पद्मनन्दो आचार्य ने पद्मनन्दी पच्चीसी में लिखा है कि दीपकों की श्रेणी से जिनप्रतिमा की आरती करें। ___4-नैवद्य और दीपक पूजा-जिनसंहिता में लिखा है कि कार्तिक मास में कृतिका नक्षत्र को संध्या समय श्री जिनप्रतिमा के सामने नाना प्रकार के नव द्य (मिष्ठान) रखें। घृत कर्पू र आदि से पूरित दीप जलाकर रखें। 5-दीपक पूजा-षट्कर्मोपदेशमाला में घुत-कर्प र आदि से भरपूर दीपक को जलाकर त्रिकाल (प्रातः, दोपहर, संध्या) पूजा करना लिखा है। 6-तिलक पूजा-त्रैलोक्यतिलकस्य ललाटे तिलकं महत् । अचीकरण मुदेन्द्राणी शुभाचार प्रसिद्धये ॥ अर्थ-तीनलोक के तिलक रूप इस भगवन्त के ललाट में प्रसन्न होकर इन्द्राणी शुभाचार की प्रसिद्धि केलिये तिलक करती है । 7-विलेपन पूजा-हरिवंश पुराण में लिखा है किजिनेन्द्रांगमथेन्द्राणी दिव्यानन्ददायिनि विलेपनः । अन्वलिप्यत भक्तयासी कर्मलेप विधातनम् ॥ अर्थ-श्री जिनेन्द्रदेव के अंग को इन्द्राणी प्रधान आनन्द को देनेवाले “विलेपनों से विलेपन करती है। कैसे हैं वह विलेपन ? कर्मलेप का विघात करनेवाले । 8-स्नान आभरण पूजा-धत्ताबन्ध हरिवंश पुराण में लिखा है-कि ए ण्हविऊण खीरसायर- जलेण, भूसिओ आहरण उज्जलेण ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003237
Book TitleJain Dharm aur Jina Pratima Pujan Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Duggad
PublisherJain Prachin Sahitya Prakashan Mandir Delhi
Publication Year1984
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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