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युगों युगों तक अमर रहेगा गुरू भुवनभानु का नाम
बीसवीं सदी में जिनशासन के गगनमें सूर्य की तरह चमकता हुआ प्रकाशमान व्यक्तित्व था - संघहितचिन्तक, शासन-सेवा के अनेक कार्यों के आद्यप्रणेता, तप-त्यागतितिक्षामूर्ति आचार्यदेव श्रीमद् विजयभुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. पूज्यश्री के व्यक्तित्व को संपूर्ण रूप से प्रकट करना तो अत्यन्त कठिन ही नहीं,शायद असंभव भी है। पूज्यश्री के गुणों की आंशिक अभिव्यक्ति के लिए भी ग्रंथो के ग्रंथ भर जायें | चलिए, पूज्य गुरूदेव की जीवन-यात्रा के मुख्य अंशो पर एक नजर करें। • सांसारिक नाम : कान्तिभाई,
माताजी : भूरीबहन,
पिताजी : चिमनभाई। जन्म
: वि.सं. १९६७, चैत्र वद-६, दि.१९-४-१९११, अहमदाबाद, शिक्षा : G.D.A.-C.A. समकक्ष | दीक्षा
: संवत् १९९१ पोष सुद-१२, दि.१६-१२-१९३४, चाणस्मा, छोटेभाई पोपटभाई के साथ। । • बडीदीक्षा
: संवत् १९९१, माघ सुद-१०, चाणस्मा, प्रथम शिष्य : पू.मुनिराजश्री पद्मविजयजी म.सा. (बाद में पंन्यास) • गुरूदेवश्री
: सिद्धान्तमहोदधि प.पू.आचार्यदेव श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी म.सा. गणिपद
: सं.२०१२, फाल्गुन सुद-११, दि.२२-२-१९५६, पूना, पंन्यासपद : स.२०१५, वैशाख सुद-६, दि.२-५-१९४९, सुरेन्द्रनगर • आचार्यपद
: सं.२०२९, मगसर सुद-२, दि.७-१२-१९७२, अहमदाबाद, .१०० ओली की पूर्णाहुति : सं.२०२६, आश्विन सुद १५, दि. १४-१०-१९७० कलकत्ता, .१०८ ओली की पूर्णाहुति : सं.२०३५, फाल्गुन वद-१३, दि.२५-३-१९७९, मुंबई । •विशिष्टगुण
आजीवन गुरूकुलवास सेवन, संयमशुद्धि, ज्वलंत वैराग्य, परमात्म भक्ति, क्रिया शुद्धि, अप्रमत्तता, ज्ञानमग्नता, तप-त्याग-तितिक्षा,
संघ वात्सल्य, श्रमणों का जीवन निर्माण, तीक्ष्ण शास्त्रानुसारिणी प्रज्ञा ।। • शासनोपयोगी विशिष्ट कार्य धार्मिक शिक्षण शिबिरों के द्वारा युवापीढी का उद्धार, विशिष्ट अध्यापन शैली व पदार्थ संग्रह शैली का विकास, तत्त्वज्ञान व महापुरूष-महासतियों के जीवन-चरित्रों को जन-मानस में प्रचलित करने के लिये चित्रों के माध्यम से प्रस्तुति, बाल-दीक्षा प्रतिबंधक बिल का विरोध, कत्लखानेको ताले लगवाये. दिव्यदर्शन साप्ताहिक के माध्यम से जिनवाणी का प्रसार, संघ एकता के लिये जबरदस्त पुरुषार्थ, अनेकान्तवाद के आक्रमणों के सामने संघर्ष, चारित्र-शद्धि का यज्ञ, अमलनेर में सामूहिक २६ दीक्षा, मलाड में १६ दीक्षा आदि ४०० दीक्षाएँ अपने हाथ से दी, आयंबिल के तप को विश्व में व्यापक बनाया। • कलात्मक सर्जन : जैन चित्रावलि, महावीर चरित्र, प्रतिक्रमणसूत्र-चित्र आल्बम, गुजराती- हिन्दी बालपोथी, महापुरुषों के जीवन चरित्रों की १२ व १७ तस्वीरों के दो सेट, कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरि महाराज के जीवन- चित्रों का सेट, बामणवाडाजी में भगवान महावीर चित्र गेलेरी, पिंडवाडा में पू. आचार्यदेव श्रीमद् विजयप्रेमसूरीश्वरजी म.सा. के जीवन - चित्र,थाणा-मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय में श्रीपाल - मयणा के जीवन - चित्र आदि । • प्रिय विषय : शास्त्र-स्वाध्याय घोष, साधु-वाचना, अष्टापद पूजा में मग्नता, स्तवनों के रहस्यार्थ की प्राप्ति, देवद्रव्यादि की शुद्धि, चांदनी में लेखन, बिमारी में भी खडे खडे उपयोग-पूर्वक प्रतिक्रमणादि क्रियायें, संयमजीवन की प्रेरणा, शिष्य परिवार से संस्कृत-प्राकृत ग्रंथो का विवेचन करवाना। • तप साधना : वर्धमान तप की १०८ ओली, छठ के पारणे छठ्ठ, पर्वतिथीयों में छठ्ठ, उपवास, आयंबिल आदि, फुट-मेवा-मिठाई आदि का आजीवन त्याग। •चारित्र पर्याय : ५८ वर्ष, आचार्य पद पर्याय :२० वर्ष, कुल आयुष्य : ८२ वर्ष, कुल पुस्तक : ११४ से अधिक। •स्वहस्त से दीक्षा प्रदान:४०० से अधिक, स्वहस्त से प्रतिष्ठा :२०, स्वनिश्रा में उपधान :२०, स्वहस्ते अंजनशलाका-१२। • कुल शिष्य प्रशिष्य आज्ञावर्ति परिवार :४१५, कालधर्म : सं.२०४९, चैत्र वद-१३, दि.१९-४-१९९३, अहमदाबाद ।
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