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मोक्ष
आस्रव का त्याग करके संवर का आचरण किया जाय तब नये कर्म आते रुकें (अटके) I निर्जरा के भेद का आचरण करते-करते पुराने कर्म नाश हो जाते है । फिर आत्मा सर्व-कर्म से रहित बने उसका नाम मोक्षा
जिन कारणों से संसार चलता है या बढता है उनसे विरुद्ध कारण व्यवहार में लाने से संसार जरुर अटकता है और मोक्ष होता है । जैसे, बहुत शीतल पवन से सर्दी लगी हो तो गरमी सेने से स्वस्थता । मिलती है।
परन्तु अनादिकाल से हुआ आत्मा और कर्म का संयोग किस प्रकार अलग हो? जैसे, खान में से निकला हुआ सोना उसके अस्तित्व से (बहुत पुराने काल से) मिट्टी से धुला होता है, फिर भी उस पर क्षार, अग्नि आदि के प्रयोग द्वारा शुद्ध-सो टच का सोना बनता है । वैसे ही सम्यक्त्व, संयम, ज्ञान, तपस्या वगैरह से अनादिकाल से मैली, कर्मो से भरी हुई आत्मा भी बिल्कुल शुद्ध और मुक्त बनती है। कर्म के संयोग से संसार है तो कर्म दूर होने से मोक्ष होता है, फिर कभी भी कर्म बँधते नही हैं
और संसार खडा नहीं होता है। ___ संसार में बारम्बार जन्म लेना पडे, मरना पडे, नरक में भी जाना पडे । कुत्ते, बिल्ली, गधे, कीडीमकोडे, पेङ-पत्ते, पृथ्वी वगैरह क्या-क्या होना पडे ! कितना दुःख ! कितनी घोर तकलिफ ! कैसा आत्मा का भयंकर अपमान ! संसार में शरीर है इसलिए भूख लगती है, प्यास लगती है, रोग आते है, शोक होता है, दरिद्रता, अपमान, गुलामी, विडम्बना (कष्ट), चिन्ता, सन्ताप तथा अन्य कई प्रकार के दुःख
आते है। ___ मोक्ष में शरीर का सम्बन्ध होता ही नहीं है । अकेली अरुपी शुद्ध आत्मा होती है इसलिए कोई दुःख नहीं। अकेला सख-अनहद अनन्त सख होता है। ___ वहाँ कोई शत्रु नहीं, कोई भी रोग नहीं, कोई उपाधि नहीं, कोई इच्छा ही नहीं इसी लिए अनन्त सुख.... प्रश्न : मोक्ष में खाना-पीना, चलना-फिरना या कछ करने का ही नहीं तो सख क्या?
उत्तर : खाना पडे, पीना पडे ये तो सभी उपाधि है । यह भूख-प्यास-जरुरत वगैरह की पीडा से उत्पन्न होती है | मोक्ष में कोई पीडा ही नहीं तो किस लिए उपाधि हो? किस लिए हृदय में सन्ताप हो? वहाँ तो अनन्त ऐसा केवलज्ञान है | इस ज्ञान में सारा जगत दिखाई देता है।
अनन्त आत्मा मोक्ष में गये है वे सिद्ध भगवन्त कहलाते है । कोटि-कोटि नमस्कार उन सिद्ध भगवन्तों को...॥
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